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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav Chapter 19 सूखी डाली

सूखी डाली Questions and Answers, Notes, Summary

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
मिश्रानी को किसने काम से हटा दिया?
उत्तर:
मिश्रानी को छोटी बहू बेला ने काम से हटा दिया।

प्रश्न 2.
मिश्रानी कितने वर्षों से मूलराज के परिवार में काम कर रही थी?
उत्तर:
मिश्रानी दस वर्षों से मूलराज के घर में काम कर रही थी।

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प्रश्न 3.
नौकरों से काम लेने के लिए क्या होनी चाहिए?
उत्तर:
नौकरों से काम लेने की तमीज (या ढंग) होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
हँसी के मारे मर जाने की बात कौन कहती है?
उत्तर:
हँसी के मारे मर जाने की बात मँझली बहू कहती है।

प्रश्न 5.
हर बात पर अपने मायके की तारीफ कौन करती रहती है?
उत्तर:
हर बात पर छोटी बहू बेला अपने मायके की तारीफ करती रहती है।

प्रश्न 6.
दादा जी का छोटा पोता परेश किस पद पर था?
उत्तर:
दादाजी का छोटा पोता परेश नायब तहसीलदार पद पर था।

प्रश्न 7.
मलमल के थान और अबरों को परेश किसके पास नहीं ले कर जाते?
उत्तर:
मलमल के थान और अबरों को परेश अपने दादा जी के पास नहीं ले जाता।

प्रश्न 8.
मूलराज के मँझले बेटे का नाम लिखिए।
उत्तर:
मूलराज के मँझले बेटे का नाम कर्मचन्द है।

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प्रश्न 9.
दादा जी के अनुसार उनका परिवार किस पेड़ के समान है?
उत्तर:
दादाजी के अनुसार उनका परिवार बरगद के पेड़ वट वृक्ष के समान है।

प्रश्न 10.
हल्की सी खरोंच भी दवा न लगने पर क्या बन जाती है?
उत्तर:
हल्की सी खरोंच भी दवा न लगने पर नासूर बन जाती है।

प्रश्न 11.
छोटी बहू के मन में किसकी मात्रा जरूरत से ज्यादा है?
उत्तर:
छोटी बहू के मन में दर्प की मात्रा जरूरत से कुछ ज्यादा है।

प्रश्न 12.
घृणा को किससे नहीं मिटाया जा सकता?
उत्तर:
घृणा को घृणा से नहीं मिटाया जा सकता।

प्रश्न 13.
बरगद का पेड़ किन लोगों ने उखाड़ दिया?
उत्तर:
मल्लू और जगदीश ने बरगद (वट-वृक्ष) का पेड़ उखाड़ दिया।

प्रश्न 14.
दादा जी ने परेश से छोटी बहू को कहाँ ले जाने के लिए कहा?
उत्तर:
दादाजी ने परेश से छोटी बहू को बाजार ले जाने के लिए कहा।

प्रश्न 15.
किसे दूसरों का हस्तक्षेप और आलोचना पसंद नहीं है?
उत्तर:
परेश की पत्नी बेला को दूसरों का हस्तक्षेप पसंद नहीं है।

प्रश्न 16.
व्यक्ति किन गुणों से बड़ा होता है?
उत्तर:
व्यक्ति बुद्धि और योग्यता जैसे गुणों से बड़ा होता है।

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प्रश्न 17.
पेड़ की छाया को बढ़ाने का काम कौन करती है?
उत्तर:
पेड़ की छाया को बढ़ाने का काम पेड़ की डालियाँ करती हैं।

प्रश्न 18.
दादा जी को किस कल्पना से सिहरन होने लगती है?
उत्तर:
पेड़ से अलग होने वाली डाली की कल्पना से दादाजी को सिहरन होने लगती है।

प्रश्न 19.
बरगद के पेड़ की कहानी किनका निर्माण करती हैं?
उत्तर:
बरगद के पेड़ की कहानी कुटुम्ब, समाज और राष्ट्र का निर्माण करती है।

प्रश्न 20.
दादा जी किसके हक में हैं?
उत्तर:
दादा जी पुराने नौकरों के हक में हैं।

प्रश्न 21.
किसने सारी-की-सारी छत फावड़े से खोद डाली?
उत्तर:
मालवी ने सारी की सारी छत फावड़े से खोद डाली।

प्रश्न 22.
बंसीलाल का लड़का गली के सिरे पर क्या कर रहा था?
उत्तर:
बंसीलाल का लड़का गली के सिरे पर खड़ा खम ठोंक रहा था।

प्रश्न 23.
बेला के अनुसार परिवार की सदस्या उससे किस प्रकार डरती हैं?
उत्तर:
बेला के अनुसार परिवार के सभी सदस्या उससे ऐसा डरते हैं, जैसे मुर्गी के बच्चे बाज से।

प्रश्न 24.
दादा जी ने सबको क्या समझाया था?
उत्तर:
दादाजी ने समझाया था कि सबको आपका आदर करना चाहिए।

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प्रश्न 25.
‘सूखी डाली’ के एकांकीकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘सूखी डाली’ के एकांकीकार हैं उपेन्द्रनाथ अश्क।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
इन्दु को अपनी भाभी बेला पर क्यों क्रोध आया?
उत्तर:
छोटी बहू बेला अभी-अभी शादी कर घर आई है। वह बड़े बाप की एकलौती बेटी है। बहुत पढ़ी लिखी भी है। घर की अन्य महिलाएँ सीधी-साधी है। घर में इंदु ही सबसे अधिक पढ़ी-लिखी समझी जाती थी और घर में उसकी ही खूब चलती थी। लेकिन छोटी बहू बेला जब से घर में आई घर में तनाव बढ़ने लगे। दस साल से जो मिश्रानी उनके घर काम कर रही थी उसे बैठक साफ करने तक का सलीका नहीं है कह कर निकाल दिया। हमेशा वह अपने मायके की ही बढ़ाई करती है जैसे यहाँ के सब लोग मूर्ख और गँवार है। उसी बात को लेकर इंदु और बेला में झगड़ा हुआ। बेला का कहना था कि सिर्फ झाडू कारने से कमरा थोड़े ही साफ होता है, ऐसे फूहड नौकर को उसके मायके में दो घड़ी भी न टिकने देते। इन बातों से इन्दु को अपनी भाभी पर क्रोध आया।

प्रश्न 2.
रजवा ने छोटी भाभी से क्या कहा?
उत्तर:
रजवा मिश्रानी के घरवाले पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनके घर में काम करते थे। खुद रुजवा दस साल से उनके घर में काम कर रही थी। वह घर भर की सफाई करती, बर्तन मलती, कपड़े धोती। छोटी बहू बेला के कमरे में सफाई करने गई रजवा को बहुत डाँट पड़ी। सिर्फ झाडू मारने से कमरा थोड़े ही साफ़ होता है कहकर उसे कल से मत आओ कहा तब रोती हुई रुजवा छोटी भाभी के पास आई और उसने कहा कि वह छोटी बहू का काम नहीं करेगी। इतने बरस हुए उसे उनके घर काम करते हुए किसीने इस तरह उसका ऐसा अपमान नहीं किया था। व वह रोने लगी।

प्रश्न 3.
बेला ने सारा फर्नीचर और सामान कहाँ रख दिया और क्यों?
उत्तर:
बेला ने सारा सामान और फर्नीचर अपने कमरे से निकालकर बाहर कर दिया था। वह अपने पति परेश से कहती है कि मैं इन टूटे-फूटे फर्नीचर को अपने कमरे में नहीं रहने दूंगी। परेश के बहुत कहने पर भी वह उसकी बातों को नहीं मानती है। वह आधुनिक विचारों की महिला है। इस वजह से उसके ख्याल परेश से नहीं मिलते। वह बात-बात पर अपने मैके की तारीफ करती है। वहाँ की चीजें ससुराल की तुलना में अच्छी हैं। इस बेडौल फर्नीचर से तो नीचे धरती पर चटाई बिछा कर बैठना-लेटना अच्छा है।

प्रश्न 4.
कर्मचन्द ने पेड़ से एक डाली टूटकर अलग होने की बात क्यों कही?
उत्तर:
कर्मचन्द दादाजी का मँझला लड़का था। वह उनके पास बैठा पाँव दबा रहा था। बच्चे आँगन में बरगद की पूरी डाल लाकर लगा रहे थे और उसे पानी दे रहे थे। दादाजी कहते हैं कि बच्चे नहीं जानते कि पेड़ से टूटी डाली जल देने से नहीं पनपती। एक बार पेड़ से जो डाली टूट गई, उसे लाख पानी दो, उसमें वह सरसता न आएगी। हमारा यह परिवार बरगद के पेड़ के समान है। इसे सुनकर कर्मचन्द कहता है शायद अब इस पेड़ से एक डाली टूट कर अलग हो जाए। दादाजी के पूछने पर कर्मचन्द कहता है कि छोटी बहू अलग होना चाहती है। उसके मन में दर्प की मात्रा कुछ ज्यादा है। मैंने जो मलमल के थान और रजाई के अबरे लाकर दिये थे वे उसे पसंद नहीं आये। वह अपने मायके के घराने को इस घराने से बड़ा समझती है और घृणा की दृष्टि से देखती है।

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प्रश्न 5.
दादा जी के ‘बड़प्पन’ के संबंध में क्या विचार थे?
उत्तर:
दादा जी बड़प्पन के संबंध में अपने मंझले लड़के कर्मचन्द से कहते हैं कि – बड़प्पन बाहर की वस्तु नहीं है। बड़प्पन तो मन का होना चाहिए। घृणा को घृणा से नहीं मिटाया जा सकता। छोटी बहू तभी अलग होना चाहेगी जब उसे घृणा के बदले घृणा दी जाएगी। यदि उसे घृणा के बदले स्नेह मिले तो उसकी सारी घृणा धुंधली पड़कर लुप्त हो जाएगी। महानता किसी से मनवाई नहीं जा सकती, अपने व्यवहार से अनुभव कराई जा सकती है। दूंठ वृक्ष आकाश को छूने पर भी अपनी महानता का सिक्का हमारे दिलों पर उस समय तक नहीं बैठा सकता, जब तक अपनी शाखाओं में वह ऐसे पत्ते नहीं लाता, जिनकी शीतल-सुखद छाया मन के सारे ताप को हर ले और जिसके फूलों की भीनी-भीनी सुगंध हमारे प्राणों में पुलक भर दे।

प्रश्न 6.
बेला की मानसिक दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बेला एक उच्च परिवार से आयी थी। वह नए ख्यालों की पढ़ी-लिखी आधुनिक महिला थी। वह ससुराल में आने के बाद अपने को उसके अनुसार ढ़ाल नहीं पा रही थी। परिवार के सभी लोग उसकी निंदा करते थे। वह इसकी शिकायत अपने पति परेश से करती है। उसे ऐसा महसूस होता है कि वह पराये घर में आ गई है। उसे किसी का हस्तक्षेप, दूसरों की आलोचना पसंद नहीं है। वह अपनी गृहस्थी अलग बसाना चाहती है, जहाँ उसे कोई रोकनेवाला न हो, जहाँ वह सुख और शांति से रह सके। बेला की मानसिक दशा इस तरह थी।

प्रश्न 7.
दादा जी ने परेश को किस प्रकार मनाया?
उत्तर:
परेश ने दादा जी से कहा कि बेला अपनी अलग गृहस्थी बसाना चाहती है। उसका इस घर में मन नहीं लगता। अगर आप बाग वाले मकान का प्रबंध कर दें ….. जहाँ वह स्वेच्छापूर्वक जीवन बिता सके। दादा जी कहते हैं कि ये उनके जीते जी असंभव है। तुम चिंता न करो। मैं सबको समझा दूंगा – घर में किसी को तुम्हारी पत्नी का तिरस्कार करने का साहस न होगा। कोई उसका समय नष्ट न करेगा। ईश्वर की असीम कृपा से हमारे घर सुशिक्षित, सुसंस्कृत बहू आई है तो क्या हम अपनी मूर्खता से उसे परेशान कर देंगे? तुम जाओ बेटा, किसी प्रकार की चिंता को मन में स्थान न दो। मैं कोई-न-कोई उपाय ढूँढ निकालूँगा। तुम विश्वास रखो, वह अपने आपको परायों में घिरी अनुभव न करेगी। उसे वही आदर-सत्कार मिलेगा, जो उसे अपने घर में प्राप्त था। इस प्रकार दादा जी ने परेश को मनाया।

प्रश्न 8.
दादा जी ने किस अभिप्राय से सभी को बुलाया और क्या कहा?
उत्तर:
दादा जी अपने परिवार को बरगद के पेड़ के समान मानते थे। वे किसी भी कीमत पर अपने परिवार को बिखरते हुए नहीं देख सकते थे। जब उन्हें पता चलता है कि छोटी बहू बेला परिवार से अलग होना चाहती है तब वे परिवार के सभी सदस्यों को बुलाते हैं और उनसे कहते हैं कि छोटी बहू को वही आदर सम्मान मिले जो उसे अपने घर में मिलता था। वह एक बड़े घर से आयी है और अत्यधिक पढ़ी-लिखी है। मेरी इच्छा है कि सब लोग उसकी बुद्धि और योग्यता का लाभ उठाएँ। उससे परामर्श लें और हो सके तो उसका काम भी आपस में बाँट लो। उसे पढ़ने-लिखने का अधिक अवसर दो। उसे इस बात का एहसास न हो कि वह दूसरे घर में आ गई है। कोई भी उसका निरादर न करे और न ही उसकी हँसी उड़ाये ।

प्रश्न 9.
दादा जी की क्या आकांक्षा थी?
उत्तर:
दादा जी अपने परिवार को एक बड़े बरगद के पेड़ के समान मानते थे। अगर पेड़ की एक भी डाली टूट कर अलग हो जाए तो फिर चाहे उसे कितना भी पानी दो उसमें सरसता नहीं आ सकती। जब उन्हें पता चलता है कि परेश अलग होनेवाला है तो वे परिवार के सभी सदस्यों को बुलाकर समझाते हैं कि कोई भी छोटी बहू का अनादर न करे। दादाजी की आकांक्षा थी कि वृक्ष की सभी डालियाँ साथ-साथ बढ़ें, फलें फूलें, जीवन की सुखद शीतल वायु के परस से झूमें और सरसाएँ। पेड़ से अलग होनेवाली डाली की कल्पना उनके अंदर कंपन पैदा कर देती थी। वे परिवार को वटवृक्ष के समान देखना चाहते थे।

प्रश्न 10.
घर के लोगों के व्यवहार में बदलाव देखकर बेला की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
घर के लोगों के व्यवहार में बदलाव देखकर बेला की प्रतिक्रिया थी कि ये पहले तो ऐसे नहीं थे, अब कैसे बदल गये सभी-के-सभी। ‘जी’ कहकर पुकारना, काम न करने देना, आदर-सत्कार करना आदि…आदि। सचमुच बेला को भी लगा कि अब मुझे इनके साथ रहकर चलना होगा। दादा जी भी इससे खुश होंगे।

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प्रश्न 11.
मालवी ने सारी-की-सारी छत क्यों और कैसे खोद डाली?
उत्तर:
मालवी को लगा कि इस घर में कोई आनेवाला है। अतः उसका विरोध जताने के लिए सिर्फ दो ही घंटे पहले मजदूरों तथा राज ने जो छत डाली थी, मालवी ने सारी-की-सारी छत फावड़े से खोद डाली। बंसीलाल महाशय मुँह देखते रह गये। उनके आने तक अंतिम ईंट भी उखड़ चुकी थी।

प्रश्न 12.
बेला अपने मायके क्यों जाना चाहती थी?
उत्तर:
बेला अपने मायके इसलिए जाना चाहती थी क्योंकि उसे ऐसा लगता था कि जैसे वह अपरिचितों में आ गयी है। कोई उसे नहीं समझता और वह किसी को नहीं समझती। जब वह जाती है तो बड़ी भाभी, मँझली और माँजी तक खड़ी हो जाती थीं। उसके सामने कोई हँसता नहीं। उससे अधिक समय तक कोई बात नहीं करना चाहता। सब उससे ऐसा डरती है जैसे मुर्गी के बच्चे बाज से। बेला अपने मायके जाना चाहती थी कि वह आदर, सत्कार, सुख, आराम चाहती थी।

प्रश्न 13.
इन्दु के मुँह से दादा जी की बात सुनकर बेला ने क्या कहा?
उत्तर:
इन्दु ने बेला से दादाजी की बात कही, तो बेला ने कहा – किन्तु उन्होंने यह सब क्यों कहा? मैंने तो कभी उनसे इस बात की शिकायत नहीं की? मैं आदर नहीं चाहती और मैं तो तुम सबके साथ मिलकर काम करना चाहती हूँ। आप लोगों ने मुझे कितना गलत समझा और मैंने आप लोगों को। अब मैं तुम्हारे साथ सब काम मिल जुल कर करूँगी।

प्रश्न 14.
बेला ने भावावेश में सैंधे हुए कंठ से दादा जी से क्या कहा?
उत्तर:
दादाजी जब देखते हैं कि बेला कपड़े धोने जा रही है तो वे इन्दु को डाँटने वाले रहते हैं कि उस पढ़ने-लिखने दो तब भावावेश में रुंधे कंठ से दादाजी से कहती है कि वे पेड़ की किसी डाली का टूट कर अलग होना पसंद नहीं करते लेकिन क्या वे चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाल सूख कर मुरझा जाए।

प्रश्न 15.
दादा जी का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर:
दादाजी परिवार के मुखिया हैं। वे संयुक्त परिवार के पक्षधर हैं। घर का प्रत्येक व्यक्ति उनका आदर करता है। दादाजी की खूबी यह है कि घर के प्रत्येक सदस्य की समस्य का समाधान बड़ी ही चतुराई से करते हैं। परिवार को वे एक वट-वृक्ष मानते हैं और घर के सदस्यों को उस वट-वृक्ष की डालियाँ। इसलिए वे एक भी डाली को टूटने नहीं देना चाहते। यहाँ तक कि उन्होंने कहा – मैं इससे सिहर जाता हूँ। घर में मेरी बात नहीं मानी गई, तो मेरा इस घर से नाता टूट जायेगा। इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दादाजी का चरित्र श्रेष्ठ, धवल एवं सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है।

प्रश्न 16.
बेला की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बेला एक प्रतिष्ठित तथा संपन्न परिवार की सुशिक्षित लड़की है। उसका विवाह परेश से हो जाता है। वह ससुराल में आकर अपने को नये घर के अनुसार ढाल नहीं पाती। वह पढ़ी-लिखी रहने के कारण सबको गँवार, नीच, हीन दृष्टि से देखती है। घर में छोटी बहू होने के कारण सब उसकी आलोचना करना व उसे आदेश देना अपना कर्त्तव्य समझते हैं। वह आजाद ख्याल की है। उसे दूसरों का हस्तक्षेप तथा दूसरों की आलोचना पसंद नहीं है। वह परेश से अलग गृहस्थी बसाने के लिए कहती है। दादा जी परिवार के सभी सदस्यों को बुलाकर कहते हैं कि कोई बेला का अनादर नहीं करेगा। परिवार के सभी लोग अब उसका आदर करने लगते हैं। वह आदर नहीं बल्कि सबके साथ मिल-जुलकर काम करना चाहती है। जब उसे पता चलता है कि यह बदलाव दादा जी के कहने से हुआ है तो वह भावावेश में दादा जी से कहती है – ‘आप पेड़ से किसी डाली का टूट कर अलग होना पसंद नहीं करते, पर क्या आप ये चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाली सूख कर मुरझा जाय…..।’

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प्रश्न 17.
परेश के सामने कौन सी समस्या आ खड़ी हुई और उसका किस प्रकार से समाधान हुआ?
उत्तर:
परेश छोटी बहु बेला का पति है। उसकी पत्नी पढ़ी-लिखी है। घर में सभी उससे सही ढंग से व्यवहार न करने के कारण परेश धर्म-संकट में है। एक तरफ दादाजी का अनुशासन एवं कर्तव्य-पालन, तो दूसरी ओर पत्नी की समस्या। बेला का घर में मन न लगने से वह भी परेशान है। पत्नी के बारे में दादाजी से सब कुछ कह देता है। यह भी कि वह अलग घर बसाना चाहती है, जो दादाजी को पसंद नहीं। दादाजी संयुक्त परिवार का महत्व समझाते है, घर (परिवार). को वट-वृक्ष और सदस्यों को डाली बताते हैं। परेश दादाजी की सारी बातें मान लेता है। परिणाम भी अच्छा होता है। छोटी बहू में भी परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि परिवार में परेश जैसा सहनशील पुत्र, पति होना चाहिए।

प्रश्न 18.
इन्दु का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर:
इन्दु छोटी बहू (बेला) से कुछ नाराज थी। क्योंकि छोटी बहू सदा अपने मायके का गुणगान करती थी। बाकी लोगों को मूर्ख, गँवार और असभ्य समझती थी। मिश्रानी को काम से निकाल देने से भी इन्दु नाराज थी। वह भाभी को समझाती है कि नौकर से काम लेने की भी तमीज होनी चाहिए। इन्दु अधिकतर छोटी बहू के बारे में शिकायत करती रहती है- “सिर्फ जबान चलाने से क्या? काम भी तो करना चाहिए।” “क्यों, उसके हाथ नमक-मिट्टी के हैं, जो गल जायेंगे।” “उसे चौबीसों घंटे अपने मायके की पड़ी रहती है।” आदि… आदि…।

प्रश्न 19.
बड़ी बहू पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
घर में जो बड़ी बहू होती है, उसकी बड़ी जिम्मेदारी भी हुआ करती है। वह सास के बराबर मानी जाती है। अपने से छोटे-सभी का ख्याल उसे रखना पड़ता है। वह घर के सभी सदस्यों को छोटी बहू के बारे में कहती है – उसे हमारा खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना पसन्द नहीं है, उसे हमारी हर बात से घृणा है। वह बेला से कहती है – हम आपसे छोटी हैं, वर्ग में भी और बुद्धि में भी…. वह सबके काम में हाथ भी बँटाती है। हँसी-मजाक भी खूब करती है। जैसे – “मैं तो फँस गयी मँझली की बातों में…. चलो…. चलो।”

प्रश्न 20.
मँझली भाभी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मँझली बहू सदा दूसरों की हँसी उड़ाने में ही आनंद लेती है। स्वयं बात-बात पर हँसती रहती है। भाई के बारे में कहती है- आज भाई परेश की वह गति बनी कि बेचारा अपना-सा मुँह लेकर दादा जी के पास भाग गया। जबान है छोटी बहू की या कतरनी….. जब अंग्रेजी बोलने लगती है तो कुछ समझ में ही नहीं आता। परेश बेचारा अपना-सा मुँह लेकर रह जाता है। जाने तहसीलदार कैसे बन गया। कचहरी में होंगे तहसीलदार, घर में तो अपराधियों से भी गये बीते हैं। मालवी और बंसीलाल का भी मजाक उड़ाने में मँझली भाभी कभी चूकती नहीं। इस प्रकार छोटी बहू बेला के बारे में तथा घर के अन्य सभी सदस्यों के बारे में टीका-टिप्पणी करने में महारत हासिल है मँझली भाभी को।

सूखी डाली एकांकीकार का परिचय :

प्रसिद्ध साहित्यकार उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी का जन्म 1910 ई. में पंजाब के जालन्धर शहर के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। आपकी बहुमुखी प्रतिभा साहित्य की विविध विधाओं में प्रवृत्त हुई है। आप एकांकी कला क्षेत्र में यथार्थवादी परम्परा का सूत्रपात करनेवाले प्रमुख एकांकीकारों में से हैं। ‘अश्क’ जी की सभी एकांकी आज के जन जीवन से संपृक्त हैं जिनमें यथार्थवाद की ठोस अनुभूति एवं मानसिक भावों का सूक्ष्म विश्लेषण रहता है।

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भाषा प्रयोग में ‘अश्क’ जी अत्यन्त निपुण हैं। वातावरण एवं पात्रानुकूल भाषा आपके समस्त एकांकियों में परिलक्षित होती है। आपने उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों और वाक्यांशों का खुलकर प्रयोग किया है। 1965 ई. में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपको केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी की ओर से सर्वश्रेष्ठ नाटककार के सम्मान से अलंकृत किया गया।

गद्य की विभिन्न विधाओं कहानी, नाटक, एकांकी, उपन्यास, संस्मरण, समालोचना आदि में विशिष्ट योगदान के लिए 1972 ई. में आपको सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से नवाजा गया। आपकी मृत्यु 1996 ई. में हुई।

प्रमुख रचनाएँ: एकांकी-संग्रह : ‘देवताओं की छाया में’, ‘तूफान से पहले’, ‘चरवाहे’, ‘पक्का गाना’, ‘साहब को जुकाम है’ आदि।
उपन्यास : ‘सितारों के खेल’, ‘गिरती दीवारें’, ‘गर्म राख’, ‘निमिषा’ आदि।

सूखी डाली एकांकी का आशय :

प्रस्तुत एकांकी ‘सूखी डाली’ में एक सम्मिलित परिवार का चित्रण है, जो शान्तिपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था तथा जिसकी यह मान्यता थी कि सम्मिलित परिवार एक विशाल वट वृक्ष की हरी-भरी डाली के समान है। इसमें व्यक्ति, परिवार और समाज में व्यापक रूप से व्याप्त आधुनिक संघर्ष और मनोवैज्ञानिक स्थितियों को बड़ी सूक्ष्मता से नियोजित किया गया है। दादा जी के संयुक्त परिवार में छोटी बहू (बेला) के आ जाने से जो हलचल मच जाती है, वह सभी की चर्चा का विषय है। किन्तु दादा जी द्वारा समझाए जाने पर घर के सभी सदस्य जब उसके प्रति एक दूसरा ही व्यवहार आरम्भ कर देते हैं तो बेला को अपना दम घुटता-सा प्रतीत होता है और अंत में वह इन्दु के समक्ष आत्म समर्पण कर देती है। इस प्रकार दादा जी की परिपक्व बुद्धि द्वारा एक असहयोगिनी कितनी जल्दी गृह-कार्य में सहयोग देने लगती है।

श्री गंगा प्रसाद पाण्डेय का कथन कितना सार्थक है कि, दादा रूपी वट वृक्ष की छाया में परिवार के भीतर चलने वाले संघर्ष की चरम अभिव्यक्ति बेला (छोटी बहू) के इन शब्दों से स्पष्ट होती है-
“दादा जी पेड़ से किसी डाली का टूट कर अलग होना पसंद नहीं करते, पर क्या आप चाहेंगे कि पेड़ से लगी वह डाल सूख कर मुरझा जाए…’ संक्रान्ति काल की अस्त-व्यस्तता में व्यक्ति-वैचित्र्य की यथार्थ झाँकी प्रस्तुत करने में यह एकांकी पूर्ण रूप से सफल है।

सूखी डाली Summary in Hindi

पात्र-परिचय :

पुरुष पात्र

  • दादा
  • कर्मचन्द
  • परेश
  • भाषी
  • मल्लू

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स्त्री पात्र

  • बेला (छोटी बहू)
  • छोटी भाभी (बेला की सास, इन्दु की माँ)
  • मँझली भाभी
  • बड़ी भाभी
  • मँझली बहू
  • बड़ी बहू
  • रजवा
  • पारो

सारांश :
वर्तमान युग को सन्धिकाल कहा जाता है। पुराने विचार, पुरानी परंपराएं अभी मिटी नहीं हैं, नये विचार, नये संस्कार अभी आ नहीं पाये है। नतीजा यह होता है कि पुराने और नये में सर्वत्र संघर्ष दिखाई देता है। प्रत्येक कुटुम्ब में बूढ़े लोग पुरानी परंपरा के हैं, नवयुवक और नवयुवतियाँ आधुनिक विचारों से प्रभावित है। फल यह होता है कि आये दिन उनमें खट-पट होती है और कहींकहीं तो गृह-कलह का रूप धारण कर लेती है।

दादा का एक भरापूरा परिवार है। कई बेटे है, कई बहुएँ है, बच्चे है। नाती भी बड़े हो गये हैं, एक का तो विवाह भी हो गया है। दादा का यह सम्मिलित कुटुम्ब पुराने आदर्शों की रक्षा करता हुआ आनंद के साथ जीवन बिता रहा है। घर की औरतें, लड़कियाँ कुछ ज्यादा पढ़ी नही हैं, परंतु प्रेम से गृहस्थी कैसे चलायी जाती है यह वे भली-भाँति जानते हैं।

कुटुम्ब में सब छोटे, बड़ो का आदर करते हैं। सब एक दूसरे की सहायता करते हैं। एक दूसरे को प्यार करते हैं। घर में सबसे बड़े बूढ़े दादा है जो एक विशाल वट-वृक्ष की तरह खड़े हैं। उनकी छाया में सब उसी तरह सुख से रहते हैं, जैसे वट की शाखाओं में घोसला बनाकर अनेक पक्षी रहते हैं।

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दादा जी का आर्शिवाद सब पर हैं। दादा सब पर प्रेम की वर्षा करते हैं। सब की खोजखबर लेते हैं। दादा यह स्वप्न में भी नहीं सोंचते कि इस वट-वृक्ष रूपी कुटुम्ब की कोई डाली कहीं दूसरी जगह जाकर लगे। सम्मिलित कुटुम्ब के वे प्रबल पक्षपाती हैं। उसकी छत्र-छाया में सब सुखी हैं। कुटुम्ब में एक नाती परेश का विवाह हुआ। घर भर में परेश ही विशेष पढ़ा-लिखा व्यक्ति था। उसका विवाह अच्छी जगह हुआ। जो बहू आई वह ग्रेज्युएट थी।

वह बहू सम्पन्न घर से आई थी, पढ़ी-लिखी थी। यहाँ आकर देखा कि धर पुराने ढंग का, सामान पुराने ढंग का, रहन-सहन सब पुराने ढंग का। घर की स्त्रियों में कोई भी पढ़ी-लिखी नहीं, यहाँ तक कि ननद भी अल्पशिक्षित थी।

इस नये वातावरण में नई शिक्षित बहू को बड़ा अनोखा लगा। थोड़े ही दिन में उसका मुंह खुला और वह हर समय इस घरं की आलोचना करती और अपने मायके की तारीफ करती। नई बहू का इस प्रकार का व्यवहार भला किसको पसंद आता? नई बहू के व्यवहार की आलोचना होने लगी। परिणाम यह हुआ कि वह सबसे और सब उससे कटे कटे से रहने लगे।

नई बहू को इस घर के नौकर पसंद नहीं थे। रजवा नाग की एक नौकरानी को तो निकाल ही दिया। एक दिन कमरे का सब फर्नीचर बाहर डलवा दिया। उसे नई फैशन का फर्नीचर चाहिए था।

नई बहू ने अपने पति परेश से यह भी कह दिया कि मेरा तो इस घर में दम घुटता है। मेरा कोई आदर नहीं करता। सब लोग मेरा समय बरबाद करते है। मेरा पढ़ना नहीं हो पाता। इससे तो अच्छा है कि किसी दूसरी जगह जाकर रहें या फिर उसे उसके मायके भेज दिया जाय।

परेश ने अपनी पत्नी बेला को काफी समझाया मगर वह इन पिछड़े हुए लोगों के साथ रहने की अनिच्छा प्रकट करती रही।

बूढ़े दादा को इसकी खबर लग चुकी थी कि नई बहू इस घर में असंतुष्ट है और उसकी क्याक्या शिकायते हैं। एक दिन दादा ने घर के सब लोगों को इकट्ठा किया और समझाया कि नई बहू पढ़ी-लिखी है; वह सम्पन्न घर से आई है। उसका घर में सम्मान होना चाहिए। उसका समय नष्ट नहीं करना चाहिये। जिस तरह की चीजों से वह अपना कमरा सजाना चाहे, सजाने दें। उसको सम्मान देकर उसके ज्ञान का लाभ सबको उठाना चाहिये। दादा ने यह भी कहा कि उसका कुटुम्ब तो एक वट-वृक्ष की तरह है, इसकी शीतल छाया में सब रहेंगे। इसका कोई अंग अलग होकर नहीं रह सकता। जिस दिन ऐसा कोई प्रसंग आयेगा, वह स्वयं इस घर से निकल जायेंगे।

दादा की आज्ञा का कौन उल्लंघन करें? सबने वैसा ही किया।

इधर परेश दादा के पास पहुंचा और उसने कहा कि बाग वाला मकान खाली पड़ा है। आप उसे मुझे दे दें, तो हम वहाँ जाकर रहें। नई बहू को यहाँ रहना अच्छा नहीं लगता।

दादा ने परेश को समझा दिया कि तुम चिन्ता न करो। मैंने घर के सब लोगों को समझा दिया है। अब सब लोग नई बहू का सम्मान करेंगे। उसे अपने काम करने की छूट रहेगी। उसका समय कोई नष्ट नहीं करेगा। परेश चला गया।

अब घर का नक्शा ही बदल गया। जो औरतें नई बहू की आलोचना करती थीं, सम्मान देने की दृष्टि से उसकी प्रशंसा करने लगी थी। कोई भी काम उसको करने के लिए नहीं कहता था। उसका समय नष्ट न हो – इसका सब ध्यान रखते थे।

नई बहू की समझ में न आया कि यह क्या हुआ? सब के स्वभाव में यह परिवर्तन कैसे आ गया? नई बहू की सब इच्छाएँ पूरी कर दी गई थीं, फिर भी वह प्रसन्न न हो सकी। वह अपने ही घर में अपने को मेहमान-सी समझने लगी। घर के लोगों के बीच जो निकटता होनी चाहिए, उसके स्थान पर दूरी आ गई थी। नई बहू अब इससे परेशान थी।

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नई बहू ने परेश से कहा कि उसे उसके मायके भेज दें। परेश ने फटकारा – ‘जो चाहती, थी सब मिल गया, अब भी असंतुष्ट?”

नई बहू को अपनी गलती समझ में आ गई। अब उसने सबके साथ हिलमिल कर रहना सीख लिया। घर के कामों में हाथ बँटाने लगी। सबका सम्मान करने लगी। सब उसे चाहने लगे। इस तरह कुटुम्ब का एक अंग, वट-वृक्ष की एक डाली, जो अलग होने जा रही थी, बच गई। दादा प्रसन्न हुए।

सूखी डाली Summary in Kannada

सूखी डाली Summary in Kannada 1
सूखी डाली Summary in Kannada 2
सूखी डाली Summary in Kannada 3
सूखी डाली Summary in Kannada 4
सूखी डाली Summary in Kannada 5
सूखी डाली Summary in Kannada 6

सूखी डाली Summary in English

Characters:

Male Characters:

  • Daada
  • Karmachand
  • Paresh
  • Bhashee
  • Malloo

Female Characters:

  • Bela (The younger daughter-in-law)
  • Younger sister-in-law (Bela’s sister-in-law and Indu’s mother)
  • The middle sister-in-law
  • Elder sister-in-law
  • Middle daughter-in-law
  • Elder daughter-in-law
  • Rajva
  • Paro

Summary:
This play, ‘Sookhi Daali’, written by Upendranath ‘Ashk’ tells us the story of a joint family.
The modern era is known as Sandhikaal’ (an era of peace). Old thoughts, old traditions have not yet been erased, while the newer thought and new governments have not yet been established: The result is a constant battle between the old and the new. In every family, the elders subscribe to the old traditions, whereas the youngsters believe in the new light (new/contemporary thoughts). The result of this is that there is a clash between these thought processes and sometimes these are the causes of a household being broken up.

Daada had a joint family and a large house, filled with people. He had many sons, and many daughters-in-law, even many children were part of the family. Some of his grandsons had grown up, and one of them was already married. This family of Daada’s believed in protecting the age-old traditions and lived a happy life in this manner. The women and girls in the household were not very educated, but they all knew very well how to run a household with love and affection.

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In the family, all youngsters respected their elders. All of them would help one another. They loved one another. The oldest member of the house was Daada, who stood tall like a large banyan tree among the other members of the household. All the other members of the household lived happily under his care, just like the many birds who build their nests in the branches of the great banyan tree and live there happily.

Everyone was afraid of Daada. Daada showered love on everyone and he also kept a keen eye on what everyone in the house was doing. Even in his dreams, Daada could not imagine any branch of this family, which was like the great banyan tree, separating. He was a strong favourite of the entire joint family. Everyone was happy under his care. One of the grandsons of the family, Paresh, was getting married. Paresh was the most educated in the entire family and the household. He married into a good family.

The daughter-in-law who came to the household was from a well-to-do family and she was educated. After she arrived in the house, she saw that the house was of an old type, the items in the house were all of an old-style, and the lifestyle itself was of an older style. None of the women of the household was educated and even her sister-in-law was almost illiterate.

In this new environment, the new and educated daughter-in-law found it very strange. Within a few days, she began to open her mouth – she would criticize the household and praise her father’s household in comparison. Whoever would like this kind of behaviour from the new daughter-in-law, who had just come into the household? The behaviour of the new daughter-in-law began to be criticized by everyone. The result was that she became sort of distanced from everyone else in the household and everyone else became quite detached from her.

The new daughter-in-law did not like the servants of the household. One of the servants named Rajva was even removed from her job by the new daughter-in-law. One day, she removed all the furniture from her room and put it outside. She wanted furniture that was of the latest fashion.

The new daughter-in-law even went ahead and told her husband Paresh that she felt suffocated in that household. The new daughter-in-law felt that no one respected her and that everyone was wasting her time. She was not able to continue her studies. She felt that it would be better for thein to move out or for her to be sent back to her father’s house.

Paresh tried very hard to convince his wife Bela, but she kept expressing her unwillingness to live with the people of the household, who according to her were of a very orthodox nature.

The old Daada found out that the new daughter-in-law was not satisfied in their household and also knew what her complaints were. One day, Daada assembled all the members of the household and explained to them that the new daughter-in-law was educated and that she came from a well-to-do family. She must be respected in the household. Her time must not be wasted. She should be allowed to decorate her room with exactly the kind of things that she wanted and desired. She must be given respect and everyone must benefit from her knowledge. Daada also said that their family was like a large banyan tree and everyone would stay under its gentle shade. No part of that household should have to live separately. He also said that the day some problem like this should arise, he would himself leave the household.

Who would go against Daada’s orders? Everyone did as he had asked them to. Meanwhile, Paresh came to Daada and told Daada that if their other house that was empty was given to him, he and his wife would go and live there. His wife did not like living with the joint family under the same roof.

Daada told Paresh not to worry. He told Paresh that he had explained to everyone in the household. Now, everyone would respect the new daughter-in-law. She would be free to do the work that she desired. No one would waste her time. Paresh went away.

Now, the pattern of the entire household changed. The women who earlier criticized the new daughter-in-law now began to look at her with respect and praised her good qualities. She was not asked to do any work. Everyone was careful not to waste her time.

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The new daughter-in-law could not understand what had happened. How was there a sudden change in everyone’s attitude? All the dreams and wishes of the new daughter-in-law were fulfilled, but still, she was not pleased. She started feeling like a guest in her own house. The closeness that should have been there among all the members of the family was instead, replaced with distance. The new daughter-in-law was now upset by this.

The new daughter-in-law asked Paresh to send her back to her father’s house. Paresh scolded and told her that she had got everything she had wanted and yet she was dissatisfied.

The new daughter-in-law understood her own mistake. Now, she learnt to stay with the other members of the household peacefully. She started helping with household chores. She started treating everyone with respect. Everyone grew fond of her. In this manner, one part of the household, one branch of the great banyan tree, which was about to be separated, was saved. Daada was pleased.

कठिन शब्दार्थ :

  • तानाशाही – अधिनायकत्व, निरंकुश;
  • वट – बरगद का पेड़;
  • बिफरना – नाराज होना;
  • सलीका – तमीज़, ढंग;
  • फूहड़ – गँवार, अत्यंत निकम्मा;
  • बरबस – जबरदस्ती;
  • चुपड़ी – तेल, घी या मक्खन लगी हुई रोटी;
  • बखान – तारीफ, प्रशंसा;
  • गुसल खाना – स्नानागार;
  • अबरा – लिहाफ के ऊपर का कपड़ा;
  • अहाता – चारों ओर से घिरा हुआ;
  • भृकुटि – भौहें;
  • नासूर – ऐसा घाव जिसमें से बराबर मवाद निकलती हो;
  • तबदीली – स्थानांतरण;
  • उद्विग्नता – परेशानी;
  • अन्यमनस्कता – अनमना;
  • दयानतदार – ईमानदार, सच्चा;
  • उकाब – बड़ी जाति का गिद्ध;
  • परस – स्पर्श, छूना;
  • सरसाना – शोभित होना|