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Karnataka 2nd PUC Hindi Workbook Answers पद्य Chapter 2 सूरदास के पद

2nd PUC Hindi Workbook Answers पद्य Chapter 2 सूरदास के पद

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर: दीजिए।

प्रश्न 1.
अपने आपको कौन भाग्यशालिनी समझ रही है?
उत्तर:
गोपिकाएँ अपने आपको भाग्यशालिनी समझ रही है।

प्रश्न 2.
गोपिकाएँ किसे संबोधित करते हुए बातें कर रही है?
उत्तर:
गोपिकाएँ उद्भव से बातें कर रही है।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण के कान में किस आकार का कुंडल है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के कान में मकराकृत कुंडल है।

2nd PUC Hindi Workbook Answers पद्य Chapter 2 सूरदास के पद

प्रश्न 4.
वाणी कहाँ रह गई?
उत्तर:
वाणी मुंख मे ही रह गई।

प्रश्न 5.
कौन अंतर की बात जाननेवाले है?
उत्तर:
कृष्ण अंतर की बात जाननेवाले है।

प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण के अनुसार किसने सब माखन रवा लिया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के अनुसार उसके सखा सब माखन खा गए।

प्रश्न 7.
सूरदास किसकी शोभा पर बालि जाते है?
उत्तर:
सूरदास कान्हा को गोदी में उठाए ग्वालिनी के शोभा पर बालि जाते है।

2nd PUC Hindi Workbook Answers पद्य Chapter 2 सूरदास के पद

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: लिखिए:

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण के रुप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दूसरे पद में सूरदास कृष्ण के रुपसौंदर्य का वर्णन कर रहे है।

गोपिकाएँ कह रही है जमुना नदी के किनारे कृष्ण को देखा। उन्होने मोर मुकुट पहना है उनके कान के कुंडल मकराकृत है, शरीर पर चंदन है और उन्होने पीला वस्त्र पहना है ऐसे कृष्ण का रूप देखकर आँखोंकी प्यास बुझ गई, आँखे तृप्त हुई। हृदय की आग बुझ गई। प्रेम में पागल गोपिकाओं का हृदय भर आया है, उसके मुख से शब्द नही निकल रहे है। नदी के किनारे खडे कृष्ण से मिलने जा रही नारियाँ लज्जा से गड गई है। सूरदास कह रहै है कृष्ण प्रभु तो अंर्तज्ञानी है। वे इन गोपिकाओं की मनस्थिति को समझ सकते है।

प्रश्न 2.
सूरदास ने माखन चोरी प्रसंग का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
तीसरे पद में सूरदास गोपिकाओं के समर्पण भाव के बारे में बता रहे है। इसमें हमे यशोदा और ग्वालिनी के वात्सल्य प्रेम के बारे में जान सकते है। चोरी करते हुए कान्हा पकडे गए गोपियाँ कहती है – कान्हा तुम तो दिन-रात हमे सताते हो, आज जाके तुम हमारे हाथ आए हो। जितना भी माखन-दही हो सब खा लेते हो। अब तुम्हारा यह खेल खत्म हआ। मै तुम्हे भलीभाँति जानती हैं।

तुम्हीं माखन चोर हो। कान्हा के हाथ पकडकर ‘माखन जितना चाहे माँग के खाते’ कहने पर बडे ही निगरासतासे कान्हा कहते है ‘तुम्हारी सौगंध, माखन मैनें नहीं खाया मेरे सारे दोस्त ही खा लेते है और मेरा नाम बताते है।’ उसके मुखपर लगा माखन देखा और उसकी प्यारी, तुतलाती बोलों को सुनकर गोपिका के हृदय ममता से भर उठता है। कान्हा का यह रूप उसे इतना लुभावना लगता है कि उसका गुस्सा भाग जाता है और वह कान्हा को गोदी में उठा लेती है। यह दृश्य देखकर सूरदास कहते है ऐसे कान्हा और गोपिका पर तो मैं बलि बलि जाऊँ।

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III. संसदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:

प्रश्न 1.
ऊघौ हम आजु भई बड़ – भागी जिन अँखियन तुम स्यांम बिलोके ते अँखियाँ हम लागी। जैसे सुमन बास लै आवत, पवन मधुप अनुरागी। अति आनंद होत है तैसे, अंग-अंग सुख रागी।
उत्तर:
सूरदास पहले पद में गोपिकाएँ और उद्भव के बीच हुए बातचीत के बारे में कह रहे है। गोपिकाँए अपने आपको बहुत भाग्यशालिनी कह रही है। जिन आँखोको शाम को देखने का सौभाग्य मिला जैसे भौरे फूलोसे प्यार करनेवाले। फूलोंकी सुगंध हवा चारों ओर फैलाती है। अंग-अंग खुशी से रोमांचित हुआ है बहुत सुख का अनुभव कर रही है। आजकल दर्पण मे देखना भी बहुत अच्छा लग रहा है प्यार की झलक से चेहरा परम सुंदर दिख रहा है। सुरदास कह रहे है ऐसे कृष्ण हम को भी मिले ताकि हमारे विरह का दुःख भी चला जाएगा। गोपियों की तरह हम भी सुख और आनंद में लहरेगे।

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