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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav Chapter 9 रैदासबानी
रैदासबानी Questions and Answers, Notes, Summary
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
रैदास किसकी रट लगाए हुए हैं?
उत्तर:
रैदास राम की रट लगाए हुए हैं।
प्रश्न 2.
अंग-अंग में किसकी सुगंध समा गई है?
उत्तर:
अंग-अंग में चंदन की/प्रभु की भक्ति का सुगंध समा गई है।
प्रश्न 3.
चकोर पक्षी किसे देखता रहता है?
उत्तर:
चकोर पक्षी चान्द को देखता रहता है।
प्रश्न 4.
रैदास अपने आपको किसका सेवक मानते हैं?
उत्तर:
रैदास अपने आपको प्रभु राम जी का सेवक मानते हैं।
प्रश्न 5.
रैदास किस प्रकार जीवन का निर्वाह करने के लिए कहते हैं?
उत्तर:
रैदास श्रम या मेहनत करके जीवन का निर्वाह करने के लिए कहते हैं।
प्रश्न 6.
रैदास के अनुसार कभी भी क्या निष्फल नहीं जाता?
उत्तर:
रैदास के अनुसार कभी भी नेक कमाई निष्फल नहीं जाती।
प्रश्न 7.
रैदास किस राज्य की कामना करते हैं?
उत्तर:
रैदास ऐसे राज्य की कामना करते हैं, जहाँ सभी को अन्न मिले।
अतिरिक्त प्रश्न :
प्रश्न 1.
रैदास अगर मोर हैं तब प्रभु जी क्या हैं?
उत्तर:
रैदास अगर मोर हैं तब प्रभु जी धन या बादल है।
प्रश्न 2.
प्रभु जी के दीपक बनने पर रैदास क्या बन जाते हैं?
उत्तर:
प्रभु जी के दीपक बनने पर रैदास जी बाती या बत्ती बन जाते हैं।
प्रश्न 3.
प्रभु जी अगर मोती हैं तो धागा कौन है?
उत्तर:
प्रभु जी अगर मोती है तो धागा रैदास जी है।
प्रश्न 4.
‘सोने मिलत सुहागा’ मुहावरे का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘सोने मिलत सुहागा’ मुहावरे का अर्थ है खुशी के मौके पर एक और खुशी का मिलना।
प्रश्न 5.
रैदास भगवान से किस प्रकार की भक्ति करते हैं?
उत्तर:
रैदास भगवान से ‘दास्यभाव’ की भक्ति करते हैं।
प्रश्न 6.
रैदास कब प्रसन्न रहेंगे?
उत्तर:
जब सभी समान हो जाएंगे तब रैदास प्रसन्न रहेंगे।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
रैदास ने भगवान और भक्त के संबंध को कैसे वर्णित किया है?
उत्तर:
कवि संत रैदास जी भक्त और भगवान का अटूट सम्बन्ध बताते हुए कहते हैं कि प्रभुजी आप चंदन हैं तो हम पानी हैं, आप यदि घना वन या जंगल हैं तो हम मोर हैं, आप यदि दीपक हैं तो हम बाती हैं, आप यदि मोती हैं तो हम धागा हैं और यदि आप स्वामी हैं तो हम आपके दास हैं; फिर हमारा संबंध अलग कैसे हो सकता है?
प्रश्न 2.
परिश्रम के महत्व के प्रति रैदास के क्या विचार हैं?
उत्तर:
परिश्रम के महत्व के प्रति रैदास जी कहते हैं कि संसार के हर मनुष्य को सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए। उनके अनुसार श्रम, लगन, निष्ठा व ईमान से किया गया प्रत्येक कार्य श्रेष्ठ व फलदायक होता है। मांगकर खाने की जगह परिश्रम की कमाई पर निर्भर रहना चाहिए। जो मनुष्य मेहनत करेगा, पसीना बहाएगा, उसका परिणाम सदा अच्छा ही होगा। ऐसे नेक कमाई कभी निष्फल नहीं होगी।
प्रश्न 3.
रैदास ने किस प्रकार के राज्य का वर्णन किया है?
उत्तर:
संत रैदास ने रामराज्य का वर्णन किया है। वे कहते हैं- ऐसा राज्य होना चाहिए जिसमें सभी प्रजा को अन्न (आहार) मिले, जहाँ छोटे-बड़े, धनी-गरीब, दीन-दलित सभी को समान अधिकार मिले। सभी समान रूप से, सौहार्दता से जिएँ। वे परिश्रम करके खुशहाल रहें।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :
प्रश्न 1.
अब कैसे छूटै राम रट लागी।
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ से लिया गया है जिसके रचयिता संत रैदास हैं।
संदर्भ : कवि ने भगवान के प्रति पूरे समर्पण भाव को स्वीकारते हुए स्वयं को पानी तथा प्रभु को चंदन के रूप में स्वीकार किया है।
भाव स्पष्टीकरण : रैदास जी कहते हैं कि अब उनका मन राम में लग गया है। वह अब प्रभु-भक्ति से छूटेगा नहीं। वे कहते हैं – प्रभु जी चन्दन के समान है और हम पानी के समान है जिसके शरीर पर लगने से अंग-अंग सुगंध से भर गया है। प्रभु जी बादल के समान हैं और भक्त मोर के समान। आसमान में बादल दिखते ही मोर नाच उठता है। वैसे ही प्रभु का नाम सुनते ही भक्त रोमांचित हो जाता है। जिस प्रकार चकोर पक्षी चाँद को निहारता है वैसे ही रैदास प्रभु की ओर निहारते रहते हैं।
विशेष : अलंकारः अंत्यानुप्रास, दास्य भक्ति, शरणागत तत्व।
प्रश्न 2.
प्रभु जी तुम दीपक, हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी तुम मोती, हम धागा,
जैसे सोने मिलत सुहागा ॥
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ से लिया गया है जिसके कवि संत रैदास हैं।
संदर्भ : इसमें रैदास जी भक्त और भगवान के बीच के संबंध का वर्णन करते हैं।
भाव स्पष्टीकरण : भगवान और भक्त के बीच के संबंध को स्पष्ट करते हुए रैदास जी कहते हैं कि भगवान के बिना भक्त का कोई अस्तित्व नहीं है। प्रभु जी यदि दीप हैं तो भक्त वर्तिका के समान है। दोनों मिलकर प्रकाश फैलाते हैं। प्रभु जी यदि मोती हैं तो भक्त धागा है, दोनों मिलकर सुंदर हार बन जाते हैं। दोनों का मिलन सोने पे सुहागे के समान है।
दास्य भक्ति, शरणागत तत्व भी इसमें दर्शाया गया है। वे (रैदास) प्रभुजी को स्वामी मानते हैं और अपने को उनका दास या सेवक मानते हैं।
विशेष : दास्य भक्ति की पराकाष्ठा इसमें है।
प्रश्न 3.
ऐसा चाहो राज में,
जहाँ मिले सबन को अन्न।
छोटा-बड़ो सभ सम बसै,
रैदास रहै प्रसन्न।।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘रैदासबानी’ नामक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता संत रैदास हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत पद में रैदास जी समाज के सभी वर्ग के लोगों के प्रति समान भाव से हितकारी एवं सुखी राज्य की कामना करते हैं।
स्पष्टीकरण : कवि संत रैदास इस पद के माध्यम से समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए चाहें वह छोटा हो या बड़ा एक ऐसे राज्य की कामना करते हैं जहाँ सभी सुखी हों, जहाँ सभी को अन्न मिले, जिसमें कोई भूखा-प्यासा न रहे, जहाँ कोई छोटा-बड़ा न होकर एक समान हो। ऐसे राज्य से रैदास को प्रसन्नता होती है।
विशेष : भाषा – ब्रज। भाव – भक्ति भावना, प्रेम भावना से परिपूर्ण।
प्रश्न 4.
रैदास श्रम करि खाइहि,
जो लौ पार बसाय।
नेक कमाई जउ करइ,
कबहुँ न निहफल जाय।।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ नामक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता संत रैदास हैं।
स्पष्टीकरणः इस पद्य में रैदास ने श्रम की महत्ता पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार श्रम, लगन, निष्ठा व ईमान से किया गया प्रत्येक कार्य श्रेष्ठ व फलदायक होता है। रैदास स्वयं कड़ी मेहनत कर कार्य करना चाहते हैं। आजीवन इसी तरह श्रम साध कर अपनी जिन्दगी गुजारना चाहते हैं। ऐसे नेक कमाई कभी निष्फल नहीं होगी, ऐसा विश्वास रैदास को भरपूर है।
विशेष : भाषा – ब्रज। श्रम की महत्ता का महत्व दर्शाया है।
प्रश्न 5.
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी।
प्रभु जी तुम घन बन, हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ नामक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता संत रैदास जी हैं।
संदर्भ : रैदास जी ने भगवान राम को समर्पण भाव से स्वीकारते हुए स्वयं को दास के रूप में खुद को संबोधित किया है तो प्रभु को चंदन और स्वामी के रूप में स्वीकार किया है।
व्याख्या : रैदास जी कहते हैं कि अब उनका मन भगवान राम में लग गया है। वे कहते हैं – प्रभु जी चन्दन के समान है और हम पानी के समान जिसके शरीर पर लगने से अंग अंग सुगंधित हो जाता है। प्रभु जी बादल के समान हैं और भक्त मोर के समान। आसमान में बादल देखते ही मोर नाच उठता है, वैसे ही प्रभु का नाम सुनते ही भक्त बावला हो जाता है। जिस प्रकार चकोर पक्षी चाँद को निहारता है वैसे ही रैदास भी प्रभु को निहारते रहते है।
विशेष : भगवान के प्रति दास्यभाव प्रकट किया है।
सच्ची भक्ति और एक निष्ठता व्याप्त है।
समाज का व्यापक हित, एवं मानव प्रेम को स्थान मिला।
रैदासबानी कवि परिचय :
भक्ति काल के निर्गुण संतों में संत रैदास का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। आपका ज्ञान सत्संग एवं लौकिक अनुभव का प्रतिफल था। आप अपने आचरण में संत और साधना में भक्त थे। आपकी भक्ति सरल और सहज है। उसमें न तो योग-मार्ग की जटिलता है और न भक्ति का शास्त्रीय विधान। रैदास वस्तुतः प्रेमा भक्ति से अनुगत थे। आपकी वाणी में भक्ति भावना, समाज का व्यापक हित, मानव प्रेम आदि को स्थान मिला है। आपके भजन एवं उपदेशों से लोग प्रेरित होकर अनुयायी बन जाते थे। आपकी वाणी का प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर विद्यमान था। संत रैदास जी ने अपने आचरण और व्यवहार से प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म और व्यवसाय के कारण महान नहीं बनता बल्कि विचारों की श्रेष्ठता और गुण के आधार पर ही श्रेष्ठ बनता है।
रैदासबानी कविता का आशय :
प्रस्तुत पदों में संत रैदास ने भगवान के प्रति अपना दास्यभाव प्रकट किया है। प्रभु को चंदन, दीपक, मोती और स्वामी मानते हुए अपने आपको पानी, बाती, धागा और दास माना है। परिश्रम से की गई कमाई को श्रेष्ठ बताया गया है और अन्त में एक सुखी राज्य की कामना की गई है।
रैदासबानी कविता का भावार्थ :
1) अब कैसे छूटै राम रट लागी।
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी।
प्रभु जी तुम घन बन, हम मोरा
जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी तुम दीपक, हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी तुम मोती, हम धागा,
जैसे सोने मिलत सुहागा।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा
ऐसी भगति करै रैदासा ॥1॥
कवि कहते हैं कि भगवान की ऐसी रट लग गई है कि वह अब छूट नहीं रही है। प्रभुजी आप चंदन है, हम पानी हैं। आप दीपक हैं, हम बाती हैं। आप मोती हैं, हम धागा हैं। आप स्वामी हैं और हम दास या सेवक हैं।
शब्दार्थ :
प्रभु – भगवान;
घन – बादल;
चकोरा – चकोर पक्षी;
बाती – बत्ती।
2) रैदास श्रम करि खाइहि,
जो लौ पार बसाय।
नेक कमाई जउ करइ,
कबहुँ न निहफल जाय ॥2॥
कवि इस पद में श्रम की महत्ता बताते हैं कि मनुष्य को कर्मयोगी बनना चाहिए। मेहनत की कमाई से खाना चाहिए। क्योंकि नेकी से की गई कमाई कभी भी निष्फल नहीं होती।
शब्दार्थ :
श्रम – मेहनत;
करि – करके;
निहफल – निष्फल।
3) ऐसा चाहो राज में,
जहाँ मिले सबन को अन्न।
छोटा-बड़ो सभ सम बसै,
रैदास रहै प्रसन्न ॥3॥
अन्त में कवि एक ऐसे राज्य की कामना करते हैं कि जहाँ सभी सुखी हों, जहाँ सभी को अन्न मिले, कोई भूखा-प्यासा न हो और जहाँ कोई छोटा-बड़ा न होकर, सभी समान हो। ऐसे राज्य को देखकर रैदास प्रसन्न होते हैं।
शब्दार्थ :
सबन – सभी;
राज – राज्य;
सभ – सब।
रैदासबानी Summary in Kannada
रैदासबानी Summary in English
The following is a collection of verses by the saint Raidas.
In the first verse, the poet says that he has been uttering the Lord’s name and now it is becoming impossible for him to stop. The poet compares himself, a devotee, to the Lord. . He says that if the Lord is sandalwood, then I (the poet) am water. If the Lord is a flame, then the poet is a wick. If the Lord is a pearl, then the poet says that he is a thread. Finally, he says that the Lord is the almighty and he is a servant of the Lord.
In the second verse, Raidas explains the importance of hard work. He says that one must always work hard and feed oneself by one’s efforts. Raidas tells the reader that we must become a Karmayogi – One who believes it is one’s duty to put in efforts. When one works hard and earns his livelihood through moral means, his efforts never go unrewarded.
In the third verse, Raidas imagines a kingdom where everyone is happy, and where everyone has enough food to eat. He imagines such a kingdom where no one is left wanting for food or water, and where without discrimination, everyone is equal and lives happily. Imagining such a kingdom makes Raidas happy.