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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav Chapter 16 एक वृक्ष की हत्या

एक वृक्ष की हत्या Questions and Answers, Notes, Summary

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
कवि ने बूढ़ा चौकीदार किसे कहा है?
उत्तर:
कवि ने अपने घर के सामने वाले पेड़ को बूढ़ा चौकीदार कहा है।

प्रश्न 2.
वृक्ष का शरीर किससे बना है?
उत्तर:
वृक्ष का शरीर पुराने चमड़े से बना हुआ है।

प्रश्न 3.
सूखी डाल कैसी है?
उत्तर:
सूखी डाल राइफिल-सी है।

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प्रश्न 4.
वृक्ष की पगड़ी कैसी है?
उत्तर:
वृक्ष की पगड़ी फूल और पत्तीदार है।

प्रश्न 5.
देश को किससे बचाना है?
उत्तर:
देश को दुश्मनों से बचाना है।

प्रश्न 6.
हवा को क्या हो जाने से बचाना है?
उत्तर:
हवा को धुआँ हो जाने से बचाना है।

प्रश्न 7.
जंगल को क्या हो जाने से बचाना है?
उत्तर:
जंगल को मरुथल (रेगिस्तान) होने से बचाना है।

अतिरिक्त प्रश्न :

प्रश्न 1.
अबकी कौन घर लौटा?
उत्तर:
अबकी कवि (कुँवर नारायण) घर लौटे।

प्रश्न 2.
वृक्ष का जूता कैसा है?
उत्तर:
वृक्ष का जूता फटा-पुराना है।

प्रश्न 3.
अभी भी किसमें अक्खड़पन दिखाई देता है?
उत्तर:
बूढ़े चौकीदार वृक्ष में अभी भी अक्खड़पन दिखाई देता है।

प्रश्न 4.
वृक्ष की वर्दी किस रंग की है?
उत्तर:
वृक्ष की वर्दी खाकी रंग की है।

प्रश्न 5.
दूर से ही वृक्ष कैसे ललकारता है?
उत्तर:
दूर से वृक्ष हमेशा चौकन्ना होकर ललकारता है।

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प्रश्न 6.
वृक्ष की ललकार सुन कवि क्या जवाब देते हैं?
उत्तर:
मैं तुम्हारा दोस्त हूँ।

प्रश्न 7.
पल भर में कवि कहाँ बैठ जाते हैं?
उत्तर:
पल भर में कवि पेड़ की ठंडी छाँव में बैठ जाते हैं।

प्रश्न 8.
शुरू से ही क्या अंदेशा था?
उत्तर:
शुरू से ही अंदेशा था कि कहीं एक जानी दुश्मन है।

प्रश्न 9.
घर को किससे बचाना है?
उत्तर:
घर को लुटेरों से बचाना है।

प्रश्न 10.
शहर को किससे बचाना है?
उत्तर:
शहर को नादिरों से बचाना है।

प्रश्न 11.
नदियों को क्या हो जाने से बचाना हैं?
उत्तर:
नदियों को ‘नाला’ हो जाने से बचाना है।

प्रश्न 12.
खाने को क्या हो जाने से बचाना है?
उत्तर:
खाने को जहर हो जाने से बचाना है।

प्रश्न 13.
मनुष्य को क्या हो जाने से बचाना है?
उत्तर:
मनुष्य को जंगल हो जाने से बचाना है।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
वृक्ष न दिखने पर कवि उसकी यादों में कैसे खो गये?
उत्तर:
कवि कुँवर नारायण ने वृक्ष के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त की है। बचपन से जिस वृक्ष को देखते थे, उसके न दिखने से वह दुःखी हो जाते है। यहाँ वह कह रहे है जब इस बार मैं घर लौटा तो चौकीदार के तरह घरके दरवाजे पर वह वृक्ष नही था उसकी याद में खोकर वे कहते है उसका शरीर कितना सख्त था, पुराना होने के कारण वह बहुत झुर्रियोदार और खुरदरा था। उस पर घूल जम गई थी- जिसके कारण वह मैला-कुचैला सा था, एक सूखी डाल राइफल सी तनी खडी तो ऊपर के तरफ फूल और पत्तो जैसे किसी ने पगडी पहनी हो। उसकी जड़ इतनी कठोर और सख्त थी जैसे पुराना जूता, फटापूराना चरमराता सा लेकिन फिर भी टिकाऊ सा।

प्रश्न 2.
वृक्ष की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘एक वृक्ष की हत्या’ कविता में कुँवर नारायण जी वृक्षों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए वृक्षों के महत्व को समझाते हैं। वृक्ष धूप में, बारिश में, गर्मी में, सर्दी में हमेशा चौकन्ना रह कर चौकीदार के समान मानव की रक्षा करता है। वृक्ष मानव का दोस्त है। थके-माँदे मानव को वृक्ष शान्ति एवं ठंडक पहुँचाता है। वृक्षों की संख्या घट गयी तो बारिश नहीं होगी। जंगल मरुभूमि बन कर निर्जन हो जाएगा। इसलिए पेड़ों की रक्षा कर मानव को बचाना है।

प्रश्न 3.
पर्यावरण के संरक्षण के संबंध में कवि कुँवर नारायण के विचार लिखिए।
उत्तर:
पेड के कट जाने से कवि संवेदनशील हो गए है, उसकी याद में वह भावनाशील हो गए हैं। वह कह रहे है शुरु से ही मुझे डर था कि कोई दुश्मन इस. पेड को काट न दे। अब सवाल एक पेड़ का नहीं, ऐसे कई पेड, कई जगह पर कटे जा रहे है। अपने स्वार्थ के लिए, कभी जगह के लिए तो कहीं लकडी का फर्निचर घर बनाने लोग पेड़ों को काट रहे है। इन लूटेरों से अब हमे बचाना है। इन आतंक फैलाने वालों से, अपने शहर को बचाना है। अपने देश को इन गद्यारोंसे बचाना है क्योंकि वे अपने देश या यहाँ के लोगों के बारे में नही सोच रहे है।

आज वे इन पेड़ों को काट रहे है कल ये लूटेरे सारे देश को लूटेंगे नही तो एक दिन ये नदियाँ नाले जैसे बन जाएँगे, हवा धुंआ हो। जाएगा, धुओ से भर जाएगा, तो साँस लेना भी मुश्किल हो जाएगा। पेड नही रहेंगे, बारिश न होगी, हवा गंदी हो, जाएगी तो खाना भी जहर हो जाएगा, जंगल कट जाँएगे और मरुस्थल बन जाएगा। इसके पहले कि यह हाल बनाएँगे हमे बचाना है इस देश को नही तो एकदिन यहाँ सिर्फ मनुष्यों का जंगल बन जाएगा और सभी मनुष्य जानवर जैसे व्यवहार करने लगेगे।

III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :

प्रश्न 1.
अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था-
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठय पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता कुँवर नारायण हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने उस वृक्ष को हमेशा दोस्त के रूप में माना था जिसके कट जाने पर उसकी यादें कवि को बार-बार सताती है। वह हमेशा दरवाजे पर बूढ़े चौकीदार की तरह तैनात रहता था।

भाव स्पष्टीकरण : कवि कई दिनों बाद घर लौटा तो देखा कि उसके घर के निकट जो पेड़ हुआ करता था वह कट गया है। वह पेड़ जिसके इर्द-गिर्द उसका बचपन बीता, कहीं नहीं था। वह पेड़ बूढ़ा हो गया था पर ठाठ उसकी हमेशा रहती थी। वह एक बूढ़े चौकीदार सा नियुक्त उसके घर की रखवाली करता था।

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प्रश्न 2.
दरअसल शुरू से ही था हमारे अंदेशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है, देश के दुश्मनों से।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता कुँवर नारायण हैं।

संदर्भ : इस कविता में कवि ने वृक्षों के प्रति अपनी संवेदना जताई है।

भाव स्पष्टीकरण : बचपन से ही अपने घर पर तैनात चौकीदार वृक्ष न दिखने पर कवि उदास हो जाते हैं और उसकी याद में खो जाते है। कवि और उस वृक्ष का एक रिश्ता बना हुआ था। दोस्ती हो गयी थी। धूप में, गर्मी में, बारिश में, सर्दी में हमेशा चौकन्ना, छायादार पेड़ के कट जाने पर कवि का क्षोभ बढ़ जाता है। वृक्षों के महत्व को समझाते हुए कवि कहते हैं- ऐसे जानी दुश्मनों से, नादिरों से, लुटेरों से, पर को, शहर को, देश को बचाना है। कवि ने स्वार्थी मनुष्य को धिक्कारा है।

प्रश्न 3.
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैलाकुचैला,
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूल पत्तीदार,
पाँवों में फटापुराना जूता
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल बूता।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता कुँवर नारायण हैं।

भाव स्पष्टीकरण : कवि अब की बार जब घर लौटे तो देखा घर के दरवाजे पर तैनात पुराना वृक्ष नहीं था। उसे स्मरण करते हुए कवि कहते हैं कि बूढ़ा वृक्ष जो चौकीदार जैसा लगता था, हमेशा मेरे दरवाजे पर तैनात रहता था। उसका शरीर बूढ़ा हो चला था लेकिन सख्त जान, कई मौसमों से वह गुजर चुका था। झुर्रियोंदार, खुरदुरा और मैला कुचैला लगता था। उसकी एक सूखी डाल राइफिल सी लगती थी। वृक्ष के ऊपर फैली फूल-पत्तियाँ उसकी पगड़ी जैसी दिख रही थी। उसके पाँव में फटे पुराने चरमराते हुए जूते थे। वह वृक्ष अक्खड़ता के बल बूते मजबूत खड़ा था – छाया देते हुए; स्वच्छ हवा देते हुए लेकिन ऐसा वृक्ष कट गया था। इस तरह कवि ने उस वृक्ष का विस्तार से वर्णन किया है।

प्रश्न 4.
धूप में, बारिश में,
गर्मी में, सर्दी में,
हमेशा चौकन्ना
अपनी ख़ाकी वर्दी में।
दूर से ही ललकारता, ‘कौन?’
मैं जवाब देता, ‘दोस्त!’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता कुँवर नारायण हैं। अपने घर के दरवाजे पर तैनात वृक्ष के कट जाने पर कवि उसकी यादों में खो जाते हैं।

भाव स्पष्टीकरण : कवि वृक्ष को चौकीदार की संज्ञा देते हैं। हर मौसम में जैसे धूप में, बारिश में, गर्मी में, सर्दी में हमेशा वह पेड़ चौकन्ना होकर खाकी वर्दी धारण कर हमारी रक्षा करता रहता था। कवि और वृक्ष में दोस्ती हो गई थी। वे वृक्षों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं। यदि वृक्षों के महत्व को हम नहीं समझेंगे और वृक्षों को इसी तरह काटते रहेंगे तो आगे आनेवाले दिनों में बहुत ही संकट झेलने पड़ेंगे।

प्रश्न 5.
बचाना है-
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुंआ हो जाने से
खाने को जहर हो जाने से
बचाना है – जंगल को, मरुथल हो जाने से
बचाना है – मनुष्य को जंगल हो जाने से।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता कुँवर नारायण हैं।

संदर्भ : अपने घर के दरवाजे पर तैनात वृक्ष के कट जाने पर कवि उसकी यादों में खो जाते हैं, और साथ ही साथ पर्यावरण के विनाश के प्रति मनुष्य को सचेत भी करते हैं।

भाव स्पष्टीकरण : कवि वृक्ष के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं। यदि वृक्ष के महत्व को हम नहीं समझेंगे और वृक्षों को इसी तरह काटते रहेंगे तो आगे आने वाले दिनों में बहुत संकट झेलने पड़ेंगे। इसकी शुरूआत हो चुकी है। भू ताप लगातार बढ़ रहा है, मौसम में बदलाव आ रहा हैं, और जल संकट लगातार बढ़ रहा है। साफ ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण सैकड़ों बीमारियाँ फैल रही हैं। अगर हम अब भी पर्यावरण के संरक्षण के लिए सजग नहीं होते हैं तो यह संकट और अधिक विनाशकारी होता जाऐगा। इसलिए हमें नदियों को अगर नाले में बदलने से बचाना है तो हमें अच्छी बारिश के लिए वृक्षों को बचाना है। अगर वृक्ष नहीं होंगे तो ऑक्सीजन की जगह सिर्फ धुंआ ही बचेगा। हमें खाने पीने की चीजों को प्रदूषित होने से बचाना है। उपजाऊ जमीन को रेगिस्तान में तबदील होने से बचाने के लिए जंगलों को बचाना है। और सिर्फ नदी, हवा, जंगल ही नहीं बल्कि मनुष्यता को भी बचाना है।

विशेष : पर्यावरण के प्रति कवि की संवेदना व्यक्त हुई है।
भाषा शैली – साहित्यिक हिन्दी खड़ी बोली।

एक वृक्ष की हत्या कवि परिचय :

कुँवर नारायण जी का जन्म 19 सितंबर 1927 ई. में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में हुआ। आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 ई. में अंग्रेजी में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। आपके साहित्य पर श्री नरेन्द्रदेव और आचार्य कृपलानी जी का प्रभाव दिखाई देता है।

आपका पहला काव्य संकलन ‘चक्रव्यूह’ 1956 ई. में प्रकाशित हुआ जो कि हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर माना जाता है।

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प्रसिद्ध रचनाएँ : काव्य : ‘परिवेश’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘आत्मजयी’, ‘वाजश्रवा के बहाने’, ‘तीसरा सप्तक’, ‘हम तुम’, ‘इन दिनों’ आदि। आपका कहानी संकलन ‘आकारों के आस पास’ 1971 ई. में प्रकाशित हुआ।

आपको ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘कबीर सम्मान’ के साथ ही 2005 ई. में समग्र साहित्य के लिए ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। आपकी साहित्यिक सेवा के लिए भारत सरकार ने 2009 ई. में पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित किया।

एक वृक्ष की हत्या कविता का आशय :

प्रस्तुत कविता ‘एक वृक्ष की हत्या’ में कवि कुँवर नारायण ने वृक्षों के प्रति अपनी संवेदना जताई है। बचपन से ही कवि जिस वृक्ष को देखते थे उसके न दिखने से उस वृक्ष की याद में खो जाते हैं। कवि और उस वृक्ष का एक रिश्ता बना हुआ था। कवि उस वृक्ष को दोस्त के रूप में देखते थे। वृक्ष के कट जाने पर उसकी यादें कवि को बार-बार सताती हैं। नदी, हवा, जंगल की रक्षा के साथ-साथ मानवीय भावनाओं की रक्षा करने की बात इस कविता के द्वारा प्रकट हुई है।

एक वृक्ष की हत्या कविता का भावार्थ :

प्रस्तुत कविता में कुँवर नारायण ने वृक्षों के प्रति अपनी संवेदना जताई है। कवि वृक्ष को दोस्त के रूप में देखते हैं। मानवीय भावनाओं को यहाँ देखा जा सकता है।

1) अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था….
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैलाकुचैला,
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूल पत्तीदार,
पाँवों में फटापुराना जूता
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल बूता।

कवि कहता हैं कि अब की बार जब वह घर लौटा, तो वह बूढ़ा चौकीदार वृक्ष, जो हमेशा घर के दरवाजे पर मिलता था वह नहीं था। पुराने चमड़े का बना हुआ उसका शरीर, वही कठोर जान, झुर्रियों वाला खुरदरा तना मैला-कुचैला, राइफिल की तरह उसकी सूखी डाल, एक फूल-पत्तीदार वाली पगड़ी, पाँवों में फटा-पुराना जूता चरमराता, परन्तु अक्खड़ बल-बूते वाला। कहाँ गया वह वृक्ष?

2) धूप में, बारिश में,
गर्मी में, सर्दी में,
हमेशा चौकन्ना
अपनी ख़ाकी वर्दी में।
दूर से ही ललकारता, ‘कौन?’
मैं जवाब देता, ‘दोस्त!’
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंडी छाँव में।
दरअसल शुरू से ही था हमारे अंदेशों में
कहीं एक जानी दुश्मन

धूप में, वर्षा में, सर्दी-गर्मी में हमेशा चौकन्ना रहकर अपनी खाकी वर्दी में दूर से ही ललकारता था – ‘कौन?’ कवि जवाब देता – ‘दोस्त!’ और कुछ क्षण उसकी छाया में बैठ जाता। वास्तव में कवि को संदेह था कि कोई जानी दुश्मन आ गया होगा! इन दुश्मनों से बचाना है।

3) कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है, देश के दुश्मनों से।
बचाना है-
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुंआ हो जाने से
खाने को जहर हो जाने सेः
बचाना है- जंगल को, मरुथल हो जाने से,
बचाना है- मनुष्य को, जंगल हो जाने से।

घर को लुटेरों से, शहर को नादिरों से, देश को दुश्मनों से बचाना है। नदियों को नालों से, हवा को धुंए से, खाने को जहर से, जंगल को मरुस्थल से और मनुष्य को जंगल हो जाने से बचाना है।

एक वृक्ष की हत्या Summary in Kannada

एक वृक्ष की हत्या Summary in Kannada 1
एक वृक्ष की हत्या Summary in Kannada 2

एक वृक्ष की हत्या Summary in English

In this poem, the poet Kunwar Narayan describes his feelings towards a tree. The poet treated the tree as a friend. In this poem, one can find a description of human feelings.

The poet says that when he returned home the last time, the large ‘watchkeeper’ tree, which could always be found outside the main door of his house, was no longer to be seen. The exterior of the tree was made of old skin (bark), it was a rough and hardy tree and its exterior was covered with rough wrinkles and dust and dirt. Its dry branches were like rifles, and it had a turban of leaves and flowers. Its feet had rough and wrinkled shoes (roots) but it had a very strong base. Where did this tree go?

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In the sun, in the rain, and in summer and winter, the tree would always be alert in its khaki uniform, and would always ask from afar who was trespassing. The poet would reply that it was a friend (the poet himself) and would then rest awhile under the tree’s shade. In reality, the poet always feared that some mortal enemies would visit them. He was always aware of the fact that they would have to prepare themselves to face these enemies.

The house has to be saved from thieves, the town from rioters, and the country from its enemies. The rivers have to be saved from becoming rivulets, the air has to be saved from smoke, food has to be saved from poison and the jungles have to be saved from becoming deserts, and humanity has to be saved from turning into a jungle.

कठिन शब्दार्थ :

  • तैनात – नियुक्त;
  • सख्त – कठोर;
  • खुरदरा – जो चिकनी सतह का न हो;
  • अंदेशा – संदेह;
  • नादिर – आतंकी और लुटेरा, तबाही मचाने वाला;
  • मरुथल – मरुभूमि|