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Karnataka 2nd PUC Hindi Previous Year Question Paper March 2019

समय : 3 घंटे 15 मिनट
कुल अंक : 100

I. अ) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए : (6 × 1 = 6)

प्रश्न 1.
घर में किसका राज होता है?
उत्तर:
घर में उसी का राज होता है जो कमाता है।

प्रश्न 2.
माँ के चहरे पर क्या थी?
उत्तर:
माँ के चेहरे पर उदासी थी।

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प्रश्न 3.
शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?
उत्तर:
शताब्दि की सबसे बड़ी उपलब्धि 15 अगस्त 1947 है।

प्रश्न 4.
विश्वेश्वरय्या किसके बड़े पांबद थे?
उत्तर:
विश्वेश्वरय्या समय के बड़े पाबंद थे।

प्रश्न 5.
भोलाराम का जीव किसे चकमा दे गया?
उत्तर:
भोलाराम का जीव यमदूत को चकमा दे गया।

प्रश्न 6.
‘शिन्कान्सेन’ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
‘शिन्कान्सेन’ का शाब्दिक अर्थ है- न्यू ट्रंक लाइन।

आ) निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लिखिए: (3 × 3 = 9)

प्रश्न 7.
झूठ की उत्पत्ति और उसके रूपों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
झूठ की उत्पत्ति पाप, कुटिलता और कायरता के कारण होती है। बहुत से लोग अपने सेवकों को स्वयं झूठ बोलना सिखाते हैं। लोग नीति और आवश्यकता के बहाने झूठ की रक्षा करते हैं। कुछ लोग झूठ बोलने में अपनी चतुराई समझते हैं और सत्य को छिपाकर धोखा देने या झूठ बोलकर अपने को बचा लेने में ही अपना परम गौरव मानते हैं। झठ बोलना और भी कई रूपों में दिखाई पड है। जैसे चुप रहना, किसी बात को बढ़ाकर कहना, किसी बात को छिपाना, भेद बदलना, झूठ-मूठ दूसरों के साथ हाँ में हाँ मिलाना, प्रतिज्ञा करके उसे पूरा न करना, सत्य को न बोलना, इत्यादि।

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प्रश्न 8.
प्रदूषण के संबंध में गंगा मैया ने क्या कहा है?
उत्तर:
प्रदूषण के सम्बन्ध में गंगा मैया कहती हैं कि पूरे देश का वातावरण ही जब प्रदूषित हो गया, तब मैं कैसे बच सकती हूँ। लोगों का मन दूषित हो गया है। स्वार्थी लोगों की संख्या बढ़ रही है। ‘चरित्र का संकट’ चर्चा का विषय बना हुआ है। सेवा करने से चरित्र बनता था। अब तो सब मेवा बटोरने में लग गए हैं। भक्ति, संस्कृति, आचरण के नाम पर जल स्रोतों को शुद्ध रखने की परिकल्पना भारतीय संस्कृति का अंग थी। लेकिन अब सब पैसों के लालच में पड़कर अपना सारा कचरा मुझमें ही डालते हैं इसलिए प्रदूषण बढ़ गय है। जो लोग कहते है कि गंगा में यह शक्ति है कि प्रदूषण अपने आप समाप्त होता जाता है, वे उल्लू के आस्थावान शिष्य है।

प्रश्न 9.
मैसूर राज्य के विकास में विश्वेश्वरय्या के योगदान के बारे में लिखिए।
उत्तर:
मैसर राज्य के विकास में विश्वेश्वरय्या का योगदान बहत ही महत्वपूर्ण है। कावेरी नदी पर बाँध जो अब कृष्णराजसागर नाम से मशहूर है, उसे बनाने का पूरा श्रेय श्री विश्वेश्वरय्या को जाता है। इस बाँध से जहाँ उद्योगों के लिए बिजली प्राप्त हुई, वहीं पर हजारों एकड़ भूमि की सिंचाई के लिए पानी भी मिला। ‘बृंदावन गार्डन्स’ जो के.आर.एस. डैम के पास बनाया गया है, उसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। मैसूर की शासन-व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए पंचायतों की रचना की। गाँव और शहरों में जनता के द्वारा प्रतिनिधियों का चुनाव हुआ। जनता और सरकार के बीच सहयोग बढ़ा। फलस्वरूप राज्य का अच्छा विकास हुआ। मैसूर राज्य के लिए अपना एक बैंक भी बनाया। मैसूर के लिए एक विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस तरह शैक्षणिक एवं आर्थिक विकास में भी उन्होंने भरपूर योगदान दिया।

प्रश्न 10.
चीफ़ और माँ की मुलाकात का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीफ़ साहब बरामदे में आ गए। माँ हड़बड़ाकर उठ बैठी। झट से पल्ला सिर पर रखती हुई खड़ी हो गईं। उनके पाँव लड़खड़ाने लगे, अंगुलियाँ थर-थर काँपने लगी। चीफ के चेहरे पर मुस्कराहट थी। उन्होंने कहा – नमस्ते! माँ ने सिमटते हुए दोनों हाथ जोड़े। चीफ ने हाथ मिलाने को कहा। माँ घबरा गई। शामनाथ ने कहा – माँ हाथ मिलाओं। पर हाथ कैसे मिलातीं? दायें हाथ में माला थी। घबराहट में माँ ने बायाँ हाथ ही साहाब के दाये हाथ में रख दिया। शामनाथ दिल-ही-दिल में जल उठे। देसी अफसरों की स्त्रियाँ खिलखिलाकर हँस पड़ी।

प्रश्न 11.
‘टफ्स’ के पुस्तकालय के बारे में लिखिए।
उत्तर:
टफ्स का पुस्तकालय अपने आप में अद्भुत है। इस चार मंजिल इमारत की हर मंजिल पर विशाल वाचनालय है। पुस्तकालय में कुल 6,18,615 पुस्तकें हैं। विद्युतचालित आलमारियों में रखी ये पुस्तकें मात्र एक बटन दबाने से सामने उपलब्ध होती हैं। आप जी-भरकर पढ़िए, पन्ने पलटिये या नोट्स बनाइये, वापस बटन दबाइए, आलमारी अपने-आप बंद हो जाएगी। इससे जगह की बचत और पुस्तकों की सुरक्षा भी होती है। पुस्तकों के बीच मनमाना समय गुजारने के बाद जब पुस्तकालय के द्वार से बाहर निकलते हैं, एक अलार्म जता देता है कि आपके पास कोई छुपी हुई पुस्तक नहीं है।

यहाँ इंडिक भाषा विभाग में कई दुर्लभ ग्रंथ देखने को मिलते हैं। यहाँ हिन्दी, अवधी, ब्रज भाषा, राजस्थानी, भोजपुरी, पहाड़ी और मैथिली की अनेकों पुस्तकें हैं। यहाँ पर कई दुर्लभतम पुस्तकों के लिए ‘नवलकिशोर संग्रह’ है जिसमें 187 ग्रन्थ उपलब्ध है। सरस्वती, विशाल भारत और माधुरी के अंक भी यहाँ उपलब्ध हैं। यहाँ फीजी का प्रथम हिन्दी उपन्यास ‘डउका पुरान’ भी देखने को मिलता है।

II. अ) निम्नलिखित वाक्य किसने किससे कहे? (4 × 1 = 4)

प्रश्न 12.
“क्रोधी तो सदा के हैं। अब किसी की सुनेंगे थोडे ही।”
उत्तर:
यह वाक्य बुलाकी ने अपने बेटे भोला से कहा।

प्रश्न 13.
“यू हैव मिस्ड समथिंग।”
उत्तर:
यह वाक्य डॉ. अंबालाल ने मन्नू के पिताजी से कहा।

प्रश्न 14.
“जो वह सो गयी और नींद में खर्राटे लेने लगी तो?”
उत्तर:
यह वाक्य शामनाथ की पत्नी ने पति शामनाथ से कहा।

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प्रश्न 15.
“क्यों धर्मराज, कैसे चिंतित बैठे हैं?”
उत्तर:
यह प्रश्न नारद मुनि ने धर्मराज से पूछा।

आ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो का ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए: (2 × 3 = 6)

प्रश्न 16.
“भगवान की इच्छा होगी तो फिर रुपये हो जायेंगे, उनके यहाँ किस बात की कमी है?”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को सुजान भगत ने बुलाकी से कहा कि ईश्वर के यहाँ किस बात की कमी है।

स्पष्टीकरण : एक बार जब गया के यात्री गाँव में आकर ठहरे, तो सुजान के यहाँ उनका भोजन बना। सुजान के मन में भी गया जाने की बहुत दिनों से इच्छा थी। यह अवसर देखकर वह भी चलने को तैयार हो गया। लेकिन बुलाकी ने कहा की अगले साल देखेंगे, हाथ खाली हो जाएगा। तब सुजान ने अगले साल क्या होगा, कौन जानता है, धर्म के काम को टालना नहीं चाहिए, ऐसा कहते हुए इस वाक्य को कहा।

प्रश्न 17.
“कर्तव्य करना न्याय पर निर्भर है।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘कर्त्तव्य और सत्यता’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. श्यामसुन्दर दास हैं।

संदर्भ : कर्त्तव्य करने की महत्ता का वर्णन करते हुए लेखक इस वाक्य को पाठकों से कहते हैं।

स्पष्टीकरण : डॉ. श्यामसुन्दर दास कहते हैं कि कर्त्तव्य करना हम लोगों का परम धर्म है। संसार में मनुष्य का जीवन कर्त्तव्यों से भरा पड़ा है। घर में, पारिवारिक सदस्यों के बीच और समाज में मित्रों, पड़ोसियों और प्रजाओं के बीच मनुष्य को अपना कर्त्तव्य निभाना पड़ता है। समाज के प्रति, देश के प्रति सच्चा कर्त्तव्य निभाने से हम लोगों के चरित्र की शोभा बढ़ती है। कर्त्तव्य करना न्याय पर निर्भर है। ऐसे सामाजिक न्याय को समझने पर हम लोग प्रेम के साथ कर्तव्य निभा सकते हैं।

प्रश्न 18.
“पिता के ठीक विपरीत थी हमारी बेपढ़ी-लिखी माँ।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक कहानी यह भी’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।

संदर्भ : लेखिका अपनी माँ का परिचय देते हुए यह वाक्य कहती हैं।

स्पष्टीकरण : मन्नू भण्डारी के पिताजी एक ओर बेहद कोमल और संवेदनशील शिक्षित व्यक्ति थे तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंवादी थे। एक बहुत बड़े आर्थिक झटके के कारण, गिरती आर्थिक स्थिति, नवाबी आदतें, अधूरी महत्वाकांक्षाएँ आदि के कारण वे क्रोधी और शक्की मिजाज के हो गए थे। लेकिन मन्नू की माँ पिता के ठीक विपरीत थीं। धरती माँ जैसी सहनशील। पिताजी की हर ज्यादती को अपना प्राप्य और बच्चों की हर उचित-अनुचित फरमाइश और जिद को पूरा करना अपना फर्ज समझकर बड़े सहज भाव से स्वीकार करती थीं। उन्होंने जिन्दगी भर अपने लिए कुछ माँगा नहीं, चाहा नहीं, केवल दिया ही दिया।

प्रश्न 19.
“पेंशन का ऑर्डर आ गया?’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘भोलाराम का जीव’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं।

संदर्भ : इस प्रश्न भोलाराम का जीव फाइल में से पूछता है।

स्पष्टीकरण : भोलाराम एक सरकारी कर्मचारी था। पाँच वर्ष पहले रिटायर हो गया था लेकिन अभी तक पेंशन नहीं मिली थी। परिवार निभाना मुश्किल हो गया। अंत में वह मर जाता है। उसके जीव को लेकर जब यमदूत यमलोक आ रहा था, तो भोलाराम का जीव उसे चकमा देकर लापता हो गया। उस जीव को ढूँढते हुए नारद भू लोक आते हैं। सरकारी दफ्तर में बड़े साहब को ‘वजन’ के रूप में अपनी वीणा देकर उसकी फाइल माँगते हैं और पेंशन का ऑर्डर निकालने के लिए कहते हैं, तब फाइल में से भोलाराम का जीव चीख उठता है- पोस्ट मैंन है क्या? पेंशन का आर्डर आ गया?

III. अ) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए : (6 × 1 = 6)

प्रश्न 20.
रैदास अपने आपको किसका सेवक मानते हैं?
उत्तर:
रैदास अपने आपको प्रभु राम जी का सेवक मानते हैं।

प्रश्न 21.
बुद्धिहीन मनुष्य किसके समान है?
उत्तर:
बुद्धिहीन मनुष्य बिना पूँछ और बिना सींग के पशु के समान हैं।

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प्रश्न 22.
बेटी किन्हें गहने मानती है?
उत्तर:
बेटी अपने बचपन को और माँ की ममता (मातृत्व) को ही गहने मानती है।

प्रश्न 23.
कौन राह रोकता है?
उत्तर:
पाहन (पत्थर) राह रोकता है।

प्रश्न 24.
सूखी डाल कैसी है?
उत्तर:
सूखी डाल राइफिल-सी है।

प्रश्न 25.
दीवार किसकी तरह हिलने लगी?
उत्तर:
दीवार परदों की तरह हिलने लगी।

आ) निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्ही दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए: (2 × 3 = 6)

प्रश्न 26.
श्रीकृष्ण के रूप सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं – गोपिकाओं ने यमुना नदी तट पर श्रीकृष्ण को देख लिया। वे मोर मुकुट पहने हुए हैं। कानों में मकराकृत कुण्डल धारण किये हुए हैं। पीले रंग के रेशमी वस्त्र पहने हुए हैं। उनके तन पर चन्दन-लेप है। वे अत्यंत शोभायमान हैं। उनके दर्शन मात्र से गोपिकाएँ तृप्त हुईं। हृदय की तपन बुझ गई। वे सुन्दरियाँ प्रेम-मग्न हो गईं। उनका हृदय भर आया। सूरदास कहते हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण अन्तर्यामी हैं और गोपिकाओं के व्रत को पूरा करने के लिए ही पधारे हैं।

प्रश्न 27.
कवयित्री अमरों के लोक को क्यों ठुकरा देती है?
उत्तर:
कवयित्री महादेवी वर्मा जी का विश्वास है कि वेदना एवं करुणा उन्हें आनंद की चरमावस्था तक ले जा सकते हैं। उन्होंने वेदना का स्वागत किया है। उनके अनुसार जिस लोक में दुःख नहीं, वेदना नहीं, ऐसे लोक को लेकर क्या होगा? जब तक मनुष्य दुःख न भोगे, अंधकार का अनुभव न करे तब तक उसे सुख एवं प्रकाश के मूल्य का आभास नहीं होगा। जीवन नित्य गतिशील है। अतः इसमें उत्पन्न होनेवाले संदर्भो को रोका नहीं जा सकता। जीवन की महत्ता परिस्थितियों का सामना करने में है, उनसे भागने में नहीं। कवयित्री अमरों के लोक को ठुकराकर अपने मिटने के अधिकार को बचाये रखना चाहती हैं।

प्रश्न 28.
कर्नाटक के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति के सम्बन्ध में ‘मानव’ के क्या उद्गार है?
उत्तर:
कर्नाटक की गौरव गाथा गाते हुए कवि मानव कह रहे हैं कि दुनिया भर में माथा ऊँचा करनेवाले टीपू सुलतान की वीरता, अपने बलिदान के लिए प्रसिद्ध रानी चेन्नम्मा इस धरती की देन है। प्रकृति का सुंदर रूप यहाँ देखने को मिलता है। ऐतिहासिक घटनाओं का प्रमुख क्रीडास्थल यह कर्नाटक ही है। भारतीयता कन्नड़ नाडू में बहु रूपों में सँवरती है। कर्नाटक में कावेरी नदी बहती है। यहाँ के बसवेश्वर, अक्कमहादेवी, रामानुज जैसे संतों ने अपने ज्ञान से संसार को प्रकाशि किया है। इस प्रकार धर्म, कला एवं संस्कृति का आराधना का केन्द्र है कर्नाटक।

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प्रश्न 29.
‘हो गई है पीर पर्वत सी’ गजल से पाठकों को क्या संदेश मिलता है?
उत्तर:
हो गई है पीर पर्वत-सी’ गजल देशवासियों को जागरण का संदेश देती है। यह प्रगतिवादी विचारधारा से प्रभावित होकर लिखी गई गजल है। जब तक देश में शोषित-वर्ग का दुःख दूर नहीं होता तब तक देश प्रगति-पथ पर नहीं जा सकता। दुष्यन्त कुमार दीन-दलितों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं। हर प्रान्त के हर पीड़ित व्यक्ति को शान से जीने का अधिकार है। कवि फिर कहते हैं – मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। ऐसी व्यवस्था आनी चाहिए जहाँ सभी लोग आराम से जिएँ।

इ) ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए: (2 × 4 = 8)

प्रश्न 30.
ऐसा चाहो राज में,
जहाँ मिले सबन को अन्न।
छोटा-बड़ो सभ सम बसै,
रैदास रहै प्रसन्न।।
अथवा
कनक कनक तैं सौगुनौ, मादकता अधिकाइ। उहिं खाएं बौराइ, इहिं पाएं ही बौंराइ॥
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ नामक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता संत रैदास हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत पद में रैदास जी समाज के सभी वर्ग के लोगों के प्रति समान भाव से हितकारी एवं सुखी राज्य की कामना करते हैं।

स्पष्टीकरण : कवि संत रैदास इस पद के माध्यम से समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए चाहें वह छोटा हो या बड़ा एक ऐसे राज्य की कामना करते हैं जहाँ सभी सुखी हों, जहाँ सभी को अन्न मिले, जिसमें कोई भूखा-प्यासा न रहे, जहाँ कोई छोटा-बड़ा न होकर एक समान हो। ऐसे राज्य से रैदास को प्रसन्नता होती है।

विशेष : भाषा – ब्रज। भाव – भक्ति भावना, प्रेम भावना से परिपूर्ण।

अथवा

सोना (धन) धतूरे की अपेक्षा सौ गुना अधिक नशीला होता है; क्योंकि धतूरे को तो खाने पर उन्माद होता है, परन्तु सोने को तो पाकर ही मनुष्य उन्मत्त हो जाता है। धन-दौलत का नशा पागल बना देनेवाला होता है।
अर्थात् धन बढ़ने पर मनुष्य में अहंकार आ जाता है। अहंकार के वश होकर उसे भले-बुरे का ज्ञान ही नहीं रहता। किसी वस्तु का यथार्थ ज्ञान न रहना ही मादकता है।
शब्दार्थ : कनक – स्वर्ण, धतूरा; मादकता – नशा; बौराइ – बावला, पागल होना।

प्रश्न 31.
युद्धं देहि कहे जब पामर
दे न दुहाई पीठ फेर कर;
या तो जीत प्रीति के बल पर
या तेरा पद चूमे तस्कर।
अथवा
अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था-
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘कायर मत बन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता नरेन्द्र शर्मा हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मनुष्य को कायर न बनने का संदेश देते हुए कहा है कि मनुष्य को मनुष्यता का ध्यान भी रखना अवश्यक है।

स्पष्टीकरण : कवि कह रहे हैं – हे मनुष्य! तुम कुछ भी बनो बस कायर मत बनो। अगर कोई दुष्ट या क्रूर व्यक्ति तुमसे टक्कर लेने खड़ा हो जाए, तो उसकी ताकत से डरकर तू पीछे मत हटना। पीठ दिखाकर भाग न जाना। संसार में कई ऐसे महापुरुष जन्मे हैं, जिन्होंने प्यार और सेवाभाव से दुष्टों के दिल को भी जीत लिया या पिघलाया है। क्योंकि हिंसा का जवाब प्रतिहिंसा से देना नहीं। प्रतिहिंसा भी दुर्बलता ही है, लेकिन कायरता तो उससे भी अधिक अपवित्र है। इसलिए हे मानव! तुम कुछ भी बनो लेकिन कायर मत बनो।

अथवा

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता कुँवर नारायण हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने उस वृक्ष को हमेशा दोस्त के रूप में माना था जिसके कट जाने पर उसकी यादें कवि को बार-बार सताती है। वह हमेशा दरवाजे पर बूढ़े चौकीदार की तरह तैनात रहता था।

भाव स्पष्टीकरण : कवि कई दिनों बाद घर लौटा तो देखा कि उसके घर के निकट जो पेड़ हुआ करता था वह कट गया है। वह पेड़ जिसके इर्द-गिर्द उसका बचपन बीता, कहीं नहीं था। वह पेड़ बूढ़ा हो गया था पर ठाठ उसकी हमेशा रहती थी। वह एक बूढ़े चौकीदार सा नियुक्त उसके घर की रखवाली करता था।

IV. अ) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए : (5 × 1 = 5)

प्रश्न 32.
नौकरों से काम लेने के लिए क्या होनी चाहिए?
उत्तर:
नौकरों से काम लेने की तमीज (या ढंग) होनी चाहिए।

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प्रश्न 33.
दादा जी के अनुसार उनका परिवार किस पेड के समान है?
उत्तर:
दादाजी के अनुसार उनका परिवार बरगद के पेड़ वट वृक्ष के समान है।

प्रश्न 34.
‘सूखीडाली’ के एकांकीकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘सूखी डाली’ के एकांकीकार हैं उपेन्द्रनाथ अश्क।

प्रश्न 35.
सुशीला किसके लिए बेचैन है?
उत्तर:
सुशीला अपने बेटे भारवि के न आने से बेचैन है।

प्रश्न 36.
अहंकार किसमें बाधक है?
उत्तर:
अहंकार उन्नति में बाधक है।

आ) निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिएः (2 × 5 = 10)

प्रश्न 37.
इन्दू को अपनी भाभी बेला पर क्यों क्रोध आया?
अथवा
दादा जी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
इन्दु को अपनी भाभी बेला पर क्रोध इसलिए आया क्योंकि उसने घर की पुरानी नौकरानी रजवा को काम से निकाल दिया था। बेला बात-बात पर अपने मायके के बारे में बड़ी ऊँची बातें और प्रशंसा अधिक करती थी। हर बात पर अपने घर की बड़ाई करती थी। उसे अपने ससुराल की कोई भी चीज़ पसंद नहीं आती थी। यहाँ के लोगों का खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना कुछ भी पसंद न आता था। इस बात से इन्दू को अपनी भाभी बेला पर क्रोध आया।

अथवा

दादाजी परिवार के मुखिया हैं। वे संयुक्त परिवार के पक्षधर हैं। घर का प्रत्येक व्यक्ति उनका आदर करता है। दादाजी की खूबी यह है कि घर के प्रत्येक सदस्य की समस्य का समाधान बड़ी ही चतुराई से करते हैं। परिवार को वे एक वट-वृक्ष मानते हैं और घर के सदस्यों को उस वट-वृक्ष की डालियाँ। इसलिए वे एक भी डाली को टूटने नहीं देना चाहते। यहाँ तक कि उन्होंने कहा – मैं इससे सिहर जाता हूँ। घर में मेरी बात नहीं मानी गई, तो मेरा इस घर से नाता टूट जायेगा। इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दादाजी का चरित्र श्रेष्ठ, धवल एवं सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है।

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प्रश्न 38.
शास्त्रार्थ में पंडितों को हराते देख पिता ने भारवि के बारे में क्या सोचा?
अथवा
महाकवि भारवि का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
शास्त्रार्थ में पंडितों को हराते देख पिता ने भारवि के बारे में सोचा कि पंडितों की हार से उसका अहंकार बढ़ता जा रहा है। उसे अपनी विद्वता का घमंड हो गया है। उसका गर्व सीमा को पार कर रहा है। भारवि आज संसार का श्रेष्ठ महाकवि है। दूर-दूर के देशों में उसकी समानता करने वाला कोई नहीं है।

उसने शास्त्रार्थ में बड़े से बड़े पण्डितों को पराजित किया है। उसका पांडित्य देखकर पिता को बहुत प्रसन्नता होती है। पर भारवि के मन में धीरे-धीरे अहंकार बढ़ता जा रहा है। पिता चाहते हैं कि भारवि और भी अधिक पंडित और महाकवि बने। पर अहंकार उन्नति में बाधक है। इसलिए पिता ने अहंकार पर अंकुश रखना चाहा। जिसे अपने पांडित्य का अभिमान हो जाता है वह अधिक उन्नति नहीं कर सकता। इसी कारण से पिता भारवि को समय-समय पर मूर्ख और अज्ञानी कहते हैं। पिता नहीं चाहते हैं कि अहंकार के कारण उसके पुत्र की उन्नति रुक जाये।

अथवा

भारवि संस्कृत के महाकवि थे जो आगे चलकर ‘किरातार्जुनीयम’ महाकाव्य की रचना करते हैं। भारवि शास्त्रार्थ में पंडितों को पराजित कर रहे थे। उनके अंदर पंडितों की हार से अहंकार बढ़ता जा रहा था। उन्हें अपनी विद्वत्ता का घमंड होता जा रहा था। उनका गर्व सीमा का अतिक्रमण कर रहा था। उनके पिता श्रीधर भरी सभा में उन्हें ताड़ते हैं। भारवि उनसे बदला लेना चाहता है। जब भारवि को पिता का उनके प्रति मंगलकामना का पता चलता है तो वे विचलित हो जाते हैं। अपनी गलती पर पछताते हुए पिता से दण्ड माँगते हैं। इस तरह भारवि के चरित्र का पता चलता है कि उन्हें अपनी गलती का पछतावा है। वे पिता द्वारा दिए हुए दण्ड को सहर्ष स्वीकार करते हुए पालन करने की आज्ञा माँगते हैं।

V. अ) वाक्य शुद्ध कीजिएः (4 × 1 = 4)

प्रश्न 39.
i) सुमना माधव का पुत्री है।
ii) एक दूध का गिलास दो।
iii) मुझको घबराना पड़ा।
iv) हम तीन भाई हूँ।
उत्तरः
i) सुमना माधव की पुत्री है।
ii) एक गिलास दूध दो।
iii) मुझे घबराना पड़ा।
iv) हम तीन भाई हैं।

आ) कोष्टक में दिये गए उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिएः (4 × 1 = 4)
(पावन, विज्ञान, समय, भला)

प्रश्न 40.
i) आप……………. तो जग भला।
ii) वह सरस्वती देवी का ………….. मंदिर है।
iii) आज का युग ……………. का युग है।
iv) ………….. परिवर्तनशील है।
उत्तरः
i) भला
ii) पावन
iii) विज्ञान
iv) समय।

इ) निम्नलिखित वाक्यों को सूचनानुसार बदलिए: (3 × 1 = 3)

प्रश्न 41.
i) आत्मानंद देश की सेवा करता है। (भूतकाल में बदलिए)
ii) शीला कपड़े धोती थी। (वर्तमानकाल में बदलिए)
iii) मैं कहानी लिखती हूँ। (भविष्यत्काल में बदलिए)
उत्तरः
i) आत्मानंद ने देश की सेवा की।
ii) शीला कपड़े धोती है।
iii) मैं कहानी लिखूगी।

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ई) निम्नलिखित मुहावरों को अर्थ के साथ जोड़कर लिखिएः (4 × 1 = 4)

प्रश्न 42.
i) खिल्ली उड़ाना a) बहुत प्यारा
ii) तारे गिनना b) हँसी उड़ाना
iii) आँखों का तारा c) मेहनत से बचना
iv) जी चुराना d) प्रतीक्षा करना
उत्तरः
i – b, ii – d, iii – a, iv – c.

उ) अन्य लिंग रूप लिखिए: (3 × 1 = 3)

प्रश्न 43.
i) कवि
ii) नायक
iii) विधुर।
उत्तरः
i) कवयित्री
ii) नायिका
iii) विधवा।

ऊ) अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखिएः (3 × 1 = 3)

प्रश्न 44.
i) जिसके पास बल न हो।
ii) जो दान करता हो।
iii) जल में रहने वाला।
उत्तरः
i) बलहीन/कमज़ोर
ii) दानी
iii) जलचर।

ए) निम्नलिखित शब्दों के साथ उपसर्ग जोड़कर नए शब्दों का निर्माण कीजिए : (2 × 1 = 2)

प्रश्न 45.
i) हार।
ii) शासन
उत्तर:
i) हार = प्र + हार = प्रहार।
ii) शासन = अनु + शासन = अनुशासन।

ऐ) निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय अलग कर लिखिए: (2 × 1 = 2)

प्रश्न 46.
i) विशेश्षता।
ii) धनवान।
उत्तर:
i) विशेषता = विशेष + ता।
ii) धनवान = धन + वान।

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VI. अ) किसी एक विषय पर निबंध लिखिए : (1 × 5 = 5)

प्रश्न 47.
i) a) इंटरनेट की दुनिया।
b) विद्यार्थी और अनुशासन।
c) किसी ऐतिहासिक स्थान की यात्रा।
अथवा
ii) छात्रावास से अपने पिताजी को एक पत्र लिखिए।
उत्तर:
a) इंटरनेट की दुनिया
इंटरनेट दुनिया भर में फैले कम्प्यूटरों का एक विशाल संजाल है जिसमें ज्ञान एवं सूचनाएं भौगोलिक एवं राजनीतिक सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए अनवरत प्रवाहित होती रहती हैं।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सियोनार्ड क्लिनरॉक को इन्टरनेट का जन्मदाता माना जाता है। इन्टरनेट की स्थापना के पीछे उद्देश्य यह था कि परमाणु हमले की स्थिति में संचार के एक जीवंत नेटवर्क को बनाए रखा जाए। लेकिन जल्द ही रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला से हटकर इसका प्रयोग व्यावसायिक आधार पर होने लगा। फिर इन्टरनेट के व्यापक स्तर पर उपयोग की संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त हुआ और अपना धन लगाना प्रारम्भ कर दिया।

1992 ई. के बाद इन्टरनेट पर ध्वनि एवं वीडियो का आदान-प्रदान संभव हो गया। अपनी कुछ दशकों की यात्रा में ही इन्टरनेट ने आज विकास की कल्पनातीत दूरी तय कर ली है। आज के इन्टरनेट के संजाल में छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटरों से लेकर मेनफ्रेम और सुपर कम्प्यूटर तक परस्पर सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहे हैं। आज जिसके पास भी अपना व्यक्तिगत कम्प्यूटर है वह इंटरनेट से जुड़ने की आकांक्षा रखता है।

इन्टरनेट आधुनिक विश्व के सूचना विस्फोट की क्रांति का आधार है। इन्टरनेट के ताने-बाने में आज पूरी दुनिया है। दुनिया में जो कुछ भी घटित होता है और नया होता है वह हर शहर में तत्काल पहँच जाता है। इन्टरनेट आधुनिक सदी का ऐसा ताना-बना है, जो अपनी स्वच्छन्द गति से पूरी दुनिया को अपने आगोश में लेता जा रहा है। कोई सीमा इसे रोक नहीं सकती। यह एक ऐसा तंत्र है, जिस पर किसी एक संस्था या व्यक्ति या देश का अधिकार नहीं है बल्कि सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं की सामूहिक सम्पत्ति है।

इन्टरनेट सभी संचार माध्यमों का समन्वित एक नया रूप है। पत्र-पत्रिका, रेडियो और टेलीविजन ने सूचनाओं के आदान-प्रदान के रूप में जिस सूचना क्रांति का प्रवर्तन किया था, आज इन्टरनेट के विकास के कारण वह विस्फोट की स्थिति में है। इन्टरनेट के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान एवं संवाद आज दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पलक झपकते संभव हो चुका है।

इन्टरनेट पर आज पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, रेडियों के चैनल उपलब्ध हैं और टेलीविजन के लगभग सभी चैनल भी मौजूद हैं। इन्टरनेट से हमें व्यक्ति, संस्था, उत्पादों, शोध आंकड़ों आदि के बारे में जानकारी मिल सकती है। इन्टरनेट के विश्वव्यापी जाल (www) पर सुगमता से अधिकतम सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त यदि अपने पास ऐसी कोई सूचना है जिसे हम सम्पूर्ण दुनिया में प्रसारित करना चाहें तो उसका हम घर बैठे इन्टरनेट के माध्यम से वैश्विक स्तर पर विज्ञापन कर सकते हैं। हम अपने और अपनी संस्था तथा उसकी गतिविधियों, विशेषताओं आदि के बारे में इन्टरनेट पर अपना होमपेज बनाकर छोड़ सकते हैं। इन्टरनेट पर पाठ्य सामग्री, प्रतिवेदन, लेख, कम्प्यूटर कार्यक्रम और प्रदर्शन आदि सभी कुछ कर सकते हैं। दूरवर्ती शिक्षा की इन्टरनेट पर असीम संभावनाएं हैं।

इन्टरनेट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भी अहम् भूमिका है। विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण एवं जनमत संग्रह इन्टरनेट के द्वारा भली-भांति हो सकते हैं। आज सरकार को जन-जन तक पहुंचने के लिए ई-गवर्नेस की चर्चा हो रही है। व्यापार के क्षेत्र में इन्टरनेट के कारण नई संभावनाओं के द्वार खुले हैं। आज दुनिया भर में अपने उत्पादों और सेवाओं का विज्ञापन एवं संचालन अत्यंत कम मूल्य पर इन्टरनेट द्वारा संभव हुआ है। आज इसी संदर्भ में वाणिज्य के एक नए आयाम ई-कॉमर्स की चर्चा चल रही है। इन्टरनेट सूचना, शिक्षा और मनोरंजन की त्रिवेणी है।

यह एक अन्तःक्रिया का बेहतर और सर्वाधिक सस्ता माध्यम है। आज इन्टरनेट कल्पना से परे के संसार को धरती पर साकार करने में सक्षम हो रहा है। जो बातें हम पुराण और मिथकों में सुनते थे और उसे अविश्वसनीय और हास्यास्पद समझते थे वे सभी आज इन्टरनेट की दुनिया में सच होते दिख रहे हैं। टेली मेडिसीन एवं टेली ऑपरेशन आदि इन्टरनेट के द्वारा ही संभव हो सके हैं।

b) विद्यार्थी और अनुशासन
अनुशासन का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा-क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक क्षेत्र में भी अनुशासन का बोलबाला है। इसके बिना जीवन में एक क्षण भी कार्य नहीं चल सकता। गृह, पाठशाला, कक्षा, सेना, कार्यालय, सभा इत्यादि में अनुशासन के बिना एक क्षण भी कार्य नहीं चल सकता। अतः अनुशासन का अर्थ नियंत्रण में रहना, नियम बद्ध कार्य करना है। इसका वास्तविक अर्थ है, बुद्धि एवं चरित्र को सुसंस्कृत बनाना।

अनुशासन का महत्व जीवन में उसी प्रकार व्याप्त है जिस प्रकार कि भोजन एवं पानी। अनुशासन मानव जीवन का आभूषण है, श्रृंगार है। मनुष्य के चरित्र का यह सबसे शुभ लक्षण है। विद्यार्थी जीवन के लिए तो यह नितांत आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन का परम लक्ष्य विद्या प्राप्ति है और विद्या-प्राप्ति के लिए अनुशासन का पालन बहुत आवश्यक है। अनुशासन न केवल व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक है, बल्कि राष्ट्रीय जीवन का आधार भी है।

विद्यार्थी जीवन भावी जीवन का नींव है। इस जीवन में यदि अनुशासन में रहने की आदत पड़ जाए तो भविष्य में प्रगति के द्वार खुल जाते हैं। एक ओर तो हम कहते हैं कि ‘आज का विद्यार्थी कल का नागरिक है’ और दूसरी ओर वही विद्यार्थी अनुशासन भंग करके आज राष्ट्र के आधार-स्तंभों को गिरा रहे हैं।

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन हीनता अत्यंत हानिकारक है। इससे माता-पिता का मेहनत से कमाया हुआ धन व्यर्थ चला जाता है। देश और समाज को अनुशासन हीनता से क्षति पहुँचती है। जो विद्यार्थी अनुशासन भंग करता है वह स्वयं अपने हाथों से अपने भविष्य को बिगाड़ता है। बसों को आग लगाना, सरकारी संपत्ति को नष्ट करना, अध्यापकों और प्रोफेसरों का अपमान करना, स्कूल और कालेज के नियमों का उल्लंघन करना और पढ़ाई के समय में राजनीतिक गतिविधियों में समय नष्ट करना इत्यादि कुछ अनुशासनहीनता के रूप हैं।

इस अनुशासनहीनता के व्यक्तिगत, सामाजिक, नैतिक, आर्थिक तथा कुछ अन्य कारण हो सकते हैं। आज स्कूल और कालेज राजनीति के केंद्र बन गए हैं। आज विद्यार्थियों में परस्पर फूट पैदा की जाती है। ये राजनीतिक दल ऐसा करके न केवल विद्यार्थी-जीवन की पवित्रता को भंग करते है बल्कि देश में अशांति, हिंसा, विघटन की भावना उत्पन्न करते हैं। स्कूल और कालेज के जीवन में राजनीति के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

आज नवयुवकों को अपने चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाई देता है। शिक्षा में कुछ ऐसे आधारभूत परिवर्तन होने चाहिए जिसमें विद्यार्थी को अपने जीवन के प्रति निष्ठा, वर्तमान के प्रति प्रेम और अतीत के प्रति श्रद्धा बढ़े। चरित्र और नैतिक पतन की जो प्रतिष्ठा हो चुकी है उसके भी कारण खोजे जाएँ और ऐसी आचार-संहिता बनाई जाए जिसका विद्यार्थी श्रद्धापूर्वक पालन कर सके।

विद्यार्थियों में शक्ति का अपार भंडार होता है। उसका सही प्रयोग होना चाहिए। स्कूल और कालेजों में खाली समय में खेलने के लिए सुविधाएँ प्राप्त की जानी चाहिए। विद्यार्थियों की रूचि का परिष्कार करके उन्हें सामाजिक और सामूहिक विकास योजनाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाए। नैतिक गिरावट के कारण और परिणाम उन्हें बताए जाए जिससे वे आत्मनिरीक्षण करके अपने जीवन के स्वयं निर्माता बन सकें। शिक्षितों की बेकारी दूर करने की कोशिश की जानी चाहिए।

अनुशासनहीनता से बचकर विद्यार्थी जब अपने कल्याण की भावना के विषय में सोचेंगे तभी उनका जीवन प्रगति-पथ पर बढ़ सकेगा। अनुशासन में बँधकर रहने पर ही वह देश एवं समाज का योग्य नागरिक बन सकता है। इसी में देश, जाति, समाज एवं विश्व का कल्याणं निहित हैं।

c) किसी ऐतिहासिक स्थान की यात्रा
मुझे पिछली गर्मियों की छुट्टियों में दिल्ली की यात्रा करने का सौभाग्य मिला। मेरे लिए यह पहली यात्रा थी। इसलिए इस यात्रा का क्षण-क्षण मेरे लिए रोमांचक था। हम स्कूल के बीस बच्चे अपने दो अध्यापकों के साथ घूमने जा रहे थे।

रात सात बजे हमारी बस बेंगलूर से चली। सभी सो गए। नींद खुली तो मैनें स्वयं को दिल्ली में पाया। एक होटल के दालान में एक घंटा बस रुकी। हाथ-मुँह धोकर, चाय-नाश्ता करके सब अपनी-अपनी सीटों पर आ विराजे। बस चलने लगी।

ऐतिहासिक दिल्ली को देखने-समझने के लिए कम से कम एक सप्ताह का समय चाहिए। इसके ऐतिहासिक स्मारकों में पुराना किला, लाल किला, जामा मस्जिद, सुनहरी मस्जिद, हुमायु का मकबरा, सिकन्दर लोदी का मकबरा, निजामुद्दीन औलिया की दरगाह, सफदरजंग का मदरसा, सूरजकुण्ड, कुतुबमीनार, अशोक स्तम्भ, फीरोजशाह का कोटला और योग माया मंदिर आदि दर्शनीय हैं। इनमें लालकिला, जामा मस्जिद, पुराना किला, कुतुबमीनार और अशोक स्तम्भ की विशेष बनावट और उस युग की वास्तुकला पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है।

दिल्ली अपने ऐतिहासिक स्थलों के साथ-साथ सांस्कृतिक एवं धार्मिक स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है। यह सभी धर्मों के स्मारकों को समेटे हुए है। बिरला मंदिर, शक्ति मंदिर, भैरों मंदिर, कालका जी का मंदिर, लोटस टेम्पल, फतहपुरी की मस्जिद, ईदगाह, स्वामी मलाई मंदिर, बौद्ध विहार, दीवान हाल और जैन लाल मंदिर आदि ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो देश की धार्मिक व सांस्कृतिक कला के प्रतीक हैं।

यहाँ पर आधुनिक इतिहास के भी अनेक दर्शनीय स्थल हैं जिनमें तीन मूर्ति भवन, राष्ट्रपति भवन, संसद् भवन, इंदिरा स्मारक, बिरलाभवन, राजघाट, शांतिवन, विजय घाट, शक्ति स्थल, किसान घाट, समता स्थल, इंडिया गेट, केन्द्रीय सचिवालय, इंदिरा गांधी स्टेडियम, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, कालिन्दी कुंज, चिड़ियाघर और राष्ट्रीय संग्रहालय आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। दिल्ली के ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थलों को देखकर मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्द भी होता है। मनोरंजन के अन्य स्थलों में राष्ट्रपति उद्यान, बाल भवन, बुद्ध जयंती पार्क, ओखला, डॉल म्यूजियम उल्लेखनीय हैं। वास्तव में बागों की महारानी दिल्ली ऐतिहासिक नगरी ही नहीं, अपितु आधुनिकता की परिचायक भी है। उसके दर्शन करके हम वापसी को चले।

अथवा

ii)

भगवान महावीर छात्रावास,
जैन कॉलेज, बेंगलूरु-18
21 मई 2019.

पूज्य पिताजी,
सादर चरण-स्पर्श।
आपका पत्र मिला। पढ़कर प्रसन्नता हुई। आपके विशेष प्रयत्न से मुझे एक अच्छा छात्रावास मिला है। यहाँ मेरी पढ़ाई तो अच्छी होती ही है, साथ ही साथ यहाँ के अच्छे वातावरण ने तथा सहपाठियों ने मेरा मन मोह लिया है। आप विश्वास रखें कि मैं आपके पास किसी प्रकार की शिकायत नहीं आने दूंगा। हमारे छात्रावास-प्रबंधक भी बहुत अच्छे हैं। वे हमें पूरा सहयोग देते हैं।
शेष सर्व कुशल।

आपका आज्ञाकारी पुत्र,
उत्तमचंद

सेवा में,
नवीन शर्मा
515, स्वामी विवेकानंद मार्ग
मैसूर – 570024.

आ) निम्नलिखित अनुच्छेद पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए: (5 × 1 = 5)

प्रश्न 48.
राजा राममोहन राय बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे। उनके पिता ने उनकी पढाई का समुचित प्रबंध किया। गाँव की पाठशाला में उन्होंने बँगला सीखी। उन दिनों कचहरियों में फारसी का बोलबाला था। अतः उन्होंने घर पर ही मौलवी से फारसी पढ़ी। नौ वर्ष की उम्र में वे अरबी की उच्च शिक्षा के लिए पटना भेजे गए। वहाँ वे तीन वर्ष तक रहे। उन्होंने कुरान का मूल अरबी में अध्ययन किया। बारह वर्ष की उम्र में वे काशी गए। चार वर्ष तक वहाँ उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया। इस बीच उन्होंने भारतीय दर्शन का भी अध्ययन किया।
प्रश्नः
i) राजा राममोहन राय की पढ़ाई की व्यवस्था किसने की?
ii) राजा राममोहन राय ने बँगला कहाँ सीखी?
iii) उन्होंने अरबी की शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
iv) बारह वर्ष की उम्र में वे कहाँ गए?
v) उन्होंने कितने वर्ष तक संस्कृत का अध्ययन किया?
उत्तर:
i) राजा राममोहन राय की पढ़ाई की व्यवस्था उनके पिता ने की।
ii) राजा राममोहन राय ने गाँव की पाठशाला में बँगला सीखी।
iii) उन्होंने अरबी की शिक्षा पटना से प्राप्त की।
iv) बारह वर्ष की उम्र में वे काशी गए।
v) उन्होंने चार वर्षों तक संस्कृत का अध्ययन किया।

इ) हिन्दी में अनुवाद कीजिए: (5 × 1 = 5)

प्रश्न 49.
2nd PUC Hindi Previous Year Question Paper March 2019 1