You can Download Chapter 15 रसखान के सवैये Questions and Answers Pdf, Notes, Summary, 1st PUC Hindi Textbook Answers, Karnataka State Board Solutions help you to revise complete Syllabus and score more marks in your examinations.
Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Vaibhav Chapter 15 रसखान के सवैये
रसखान के सवैये Questions and Answers, Notes, Summary
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिएः
प्रश्न 1.
रसखान मनुष्य रूप में अगला जन्म कहाँ लेना चाहते हैं?
उत्तर:
रसखान मनुष्य रूप में अगला जन्म ब्रजभूमि (बृंदावन) में लेना चाहते हैं।
प्रश्न 2.
रसखान पशु रूप में जन्म लेने पर कहाँ रहना चाहते हैं?
उत्तर:
रसखान पशु रूप में जन्म लेने पर नंदबाबा की गौओं में किसी गौ के रूप में जन्म लेना चाहते हैं।
प्रश्न 3.
रसखान पक्षी रूप में जन्म लेने पर किस डाली पर बसना चाहते हैं?
उत्तर:
रसखान पक्षी रूप में कालिंदी नदी के किनारे, कदंब के वृक्षों की डाली पर बसेरा करना चाहते हैं।
प्रश्न 4.
गोपी सिर पर क्या धारण करना चाहती है?
उत्तर:
गोपी सिर पर मोर-मुकुट धारण करना चाहती हैं।
प्रश्न 5.
गोपी कृष्ण की मुरली कहाँ नहीं रखना चाहती?
उत्तर:
गोपी कृष्ण की मुरली अपने अधरों या ओंठों पर नहीं रखना चाहती।
अतिरिक्त प्रश्नः
प्रश्न 6.
रसखान पक्षी रूप में जन्म लेने पर किस डाली पर बसना चाहते हैं?
उत्तर:
रसखान पक्षी रूप में जन्म लेने पर कदम्ब की डाल पर बसना चाहते हैं।
प्रश्न 7.
गोपी गले में कौन-सी माला पहनना चाहती है?
उत्तर:
गोपी गले में गुंज की माला पहनना चाहती हैं।
प्रश्न 8.
गोपी पीतांबर पहनकर किसके संग घूमना चाहती है?
उत्तर:
गोपी पीतांबर पहनकर ग्वालिनों के संग घूमना चाहती हैं।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
प्रश्न 1.
रसखान ब्रजभूमि में क्यों जन्म लेना चाहते हैं?
उत्तर:
रसखान को कृष्ण की क्रीड़ा-स्थली ब्रजभूमि से बड़ा लगाव है। अतः वे कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनूँ, तो गोकुल के ग्वालों के बीच मेरा जन्म हो, पशु हो तो नंदबाबा की गौओं में, पक्षी हों तो कालिंदी-कूल या यमुना के तट स्थित कदंब डालों पर और यदि पत्थर भी बनूँ तो गोवर्धन पर्वत के पत्थर के रूप में जन्म लूँ।
प्रश्न 2.
गोपी क्या-क्या स्वांग भरती है?
उत्तर:
गोपी अपने प्रियतम श्रीकृष्ण को पाने के लिए मोर-पंख का मुकुट पहनकर, गुंज की माला (रत्नों की माला) गले में धारण कर, पितम्बर ओढ़कर हाथ में लकुटिया लेना चाहती है। वह कृष्ण के सभी स्वाँग भरकर गोधन और ग्वालिनों के संग फिरना चाहती है परन्तु मुरलीधर की मुरली अपने अधरों पर नहीं रखना चाहती है।
प्रश्न 3.
गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम कैसा है?
उत्तर:
गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम है। वे अपने कृष्ण को पाने के लिए. कृष्ण को रिझाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं; परन्तु अपनी मर्यादा के साथ रहना चाहती हैं। गोपियाँ ब्रजभूमि, ब्रज के पशु-पक्षी तथा ब्रज की गौएँ आदि को कृष्णभक्ति में सहायक मानती हैं।
अतिरिक्त प्रश्नः
प्रश्न 4.
रसखान ब्रज में किन रूपों में जन्म लेने की इच्छा प्रकट करते हैं?
उत्तर:
रसखान कहते हैं- यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनकर आऊँ, तो ब्रज के गोकुल गाँव में ग्वाला बनकर ही आऊँ। यदि पशु बनूँ तो नंद बाबा की गौओं के बीच में ही कोई गाय बनूँ। यदि पत्थर ही बन जाऊँ, तो वही गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ, जिसे कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए उठाया था। यदि पक्षी बनूँ तो यमुना नदी के किनारे कदम्ब वृक्षों पर रहने वाले पक्षियों के बीच मेरा बसेरा हो।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिएः
प्रश्न 1.
मानुष हों, तो वही रसखानि बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं, तो कहा बसु मेरो, चरौ नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हौं, तो वही गिरि कौ, जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं, बसेरो करौं मिलि कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन॥
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘रसखान के सवैये’ नामक शीर्षक से लिया गया है जिसके रचयिता रसखान हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत सवैये में रसखान हर स्थिति में ब्रज गोकुल में ही जन्म लेना चाहते हैं। वह अपना संबंध उन्हीं से जोड़ना चाहते हैं जिनके साथ कृष्ण का संबंध रहा है।
स्पष्टीकरण : इस सवैये के माध्यम से कृष्णभक्त कवि रसखान श्रीकृष्ण पर अनन्य भक्ति तथा ब्रजभूमि के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। कवि अपना संबंध उन्हीं से जोड़ना चाहते हैं जिनका संबंध श्रीकृष्ण से है। रसखान को ब्रजभूमि से इतना लगाव हो गया है कि वे कहते हैं – यदि मेरा अगला जन्म मनुष्य रूप में हो तो मैं ब्रजभूमि में रहनेवाले गोकुल गाँव के ग्वालों में जन्म लूँ। पशु के रूप में मेरा जन्म हो जाये तो मैं नंदबाबा द्वारा चराई जानेवाली गौओं के झुंड में कोई एक गौ बनूँ। पत्थर भी बन जाऊँ, तो गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ, जिसे ब्रज की रक्षा के लिए कृष्ण ने छाते के रूप में उठाया था। यदि पक्षी बनूँ, तो कालिंदी नदी के किनारे स्थित कदम्ब के पेड़ों पर वास करने वाले पक्षियों में जन्म लूँ। अर्थात् “कहीं भी रहूँ, कैसे भी रहूँ, ब्रजभूमि का होकर रहूँ” यह भाव स्पष्ट होता है।
प्रश्न 2.
मोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माला गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितम्बर लै लकुटी बन, गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो ‘रसखानि’, सो तेरे कहें सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की, अधरान-धरी अधरा न धरौंगी॥
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘रसखान के सवैये’ नामक शीर्षक से लिया गया है जिसके रचयिता रसखान हैं।
संदर्भ : गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम है। वे अपने कृष्ण को पाने के लिए, कृष्ण को रिझाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।
स्पष्टीकरण : एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि कृष्ण मेरा प्रिय है और उसे प्राप्त करने के लिए तेरे कहने पर सारा स्वांग भर लूँगी। वह मोर का पंख अपने सिर पर रख लेगी, गुंज की माला गले में पहन लेगी, पीला वस्त्र बदन पर ओढ़कर हाथ में लकुटी लेकर गोधन को ले ग्वालों के साथ वन में फिरेगी। जैसी सखी की इच्छा वह सब करेगी परन्तु कृष्ण की मुरली को अपने होटों से छूकर अपवित्र नहीं कर सकती।
रसखान के सवैये कवि परिचयः
रसखान का जन्म सन् 1559 में दिल्ली के प्रतिष्ठित पठान परिवार में हुआ था। आप कृष्णभक्त मुस्लिम कवियों में सर्वोपरि माने जाते हैं। गोस्वामी विठ्ठलनाथ से दीक्षा लेने के कारण आपको वल्लभ संप्रदाय का अनुयायी माना जाता है। ‘252 वैष्णवन् की वार्ता’ में भी आपका उल्लेख बड़े आदर से किया गया है। आपकी मृत्यु सन् 1628 में हुई।
प्रमुख रचनाएँ : ‘सुजान-रसखान’ और ‘प्रेमवाटिका’।
प्रस्तुत पद में रसखान हर स्थिति में ब्रज में ही जन्म लेना चाहते हैं। आपने अपना संबंध उन्हीं से जोड़ने की इच्छा प्रकट की है जिनसे कृष्ण का संबंध रहा है। दूसरे पद में गोपी अपनी सखी से कहती है कि कृष्ण मेरा प्रिय है और उसे प्राप्त करने के लिए तेरे कहने पर सारा स्वाँग भर लूँगी.
पद का भावार्थः
1) मानुष हों, तो वही रसखानि बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं, तो कहा बसु मेरो, चरौ नित नंद की धेनु मॅझारन॥
पाहन हौं, तो वही गिरि कौ, जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं, बसेरो करौं मिलि कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन ॥१॥
भावार्थ : रसखान इस सवैये में ब्रज में ही जन्म लेने के लिए तथा ब्रज से ही जुड़े रहने के लिए अपनी इच्छा प्रकट कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनकर आऊँ, तो ब्रज के गोकुल गाँव में ग्वाला बनकर ही आऊँ। लेकिन मेरे बस की बात नहीं यदि पशु बनूँ, तो नंदबाबा की गौओं के बीच में कोई गाय बनूँ। यदि पत्थर ही बन जाऊँ, तो वही गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ, जिसे कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से ब्रज वासियों की रक्षा के लिए उठाया था। यदि मैं पक्षी के रूप में जन्म लूँ, तो कालिंदी नदी (यमुना नदी) के किनारे रहने वाले कदंब वृक्षों की डालियों पर रहने वाले पक्षियों में मेरा बसेरा हो। तात्पर्य यह है कि कवि रसखान को ब्रजभूमि से इतना लगाव है कि किसी भी हालत में, किसी भी रूप में वे ब्रजभूमि में जन्म लेना चाहते हैं।
Raskhan tells us of his wish to be born in Braj (a district near Mathura) and to be connected with Braj for the rest of his life. He says that if he is reborn as a human being, he wishes to be born in the Gokul town of Braj as a cowherd. However, he admits that rebirth as a human is beyond his control, and if he is born as an animal, then he wishes to be born as a cow among the many cows belonging to Nandbaba (Lord Krishna).
Even if he is born as a stone, then he wishes to be a stone on the Govardhan Mountain which Lord Krishna lifted in order to protect the residents of Braj from the anger of God Indra. If he is born as a bird, then he wishes to be one of the birds which live on the branches of the Kadamba tree which is on the banks of the river Yamuna. What Raskhan is implying through this verse is that he is so attached to Braj (where Lord Krishna lived) that under any circumstances and in whatever form possible, he wants to be born in the holy land of Braj.
शब्दार्थ :
- मानुष – मनुष्य;
- ब्रज – ब्रजभूमि;
- ग्वारन – ग्वाला;
- मँझारन – मध्य में;
- पाहन – पत्थर;
- छत्र – छाता;
- पुरन्दर – इन्द्र;
- धारन – धारण, गर्व नष्ट करने के लिए;
- कालिन्दी-कूल-कदम्ब – यमुना के तट स्थित कदम्ब वृक्ष;
- डारन – डालियों में।
2) मोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माला गरें पहिरौंगी।
ओढि पितम्बर लै लकुटी बन, गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो ‘रसखानि, सो तेरे कहें सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की, अधरान-धरी अधरा न धरौंगी ॥२॥
भावार्थ : प्रस्तुत सवैये में एक गोपी दूसरी गोपी (सखी) से कहती है कि मैं अपने प्रिय कृष्ण को पाने के लिए उनकी इच्छानुसार सभी स्वाँग करने के लिए तैयार हूँ। कवि रसखान वर्णन करते हैं – मोर-पंख वाले मुकुट (किरीट) को सिर पर धारण करके, गुंजों (रत्नों) की माला गले में पहनूंगी। पीताम्बर ओढ़कर, हाथ में लकुटिया लेकर वन में गौओं के संग ग्वालिनी के साथ फिरूँगी। परन्तु कृष्ण के अधरों पर सुशोभित होने वाली वंशी को अपने होठो पर नहीं रदूंगी क्योंकि उनका यह विश्वास था कि कृष्ण हमारी अपेक्षा इस मुरली को अधिक प्रेम करते हैं। तथा यह हमसे अधिक सौभाग्यशाली है, हर समय कृष्ण के अधरों का प्यार पाती रहती है। इसलिए गोपियाँ इससे सौतिया डाह करती हैं। अतः वह सब कुछ करने को तैयार हैं, केवल मुरली को धारण करना नहीं चाहती।
In this verse, one milkmaid is telling another milkmaid (her friend) that in order to be close to her beloved Lord Krishna, she is prepared to wear the garb that is liked by Lord Krishna.
The poet, Raskhan, describes these – a crown of peacock feathers on her head, a necklace of jewels worn on her neck. She drapes herself with the yellow silk cloth (Pitambar), with a small stick in hand, she goes into the woods with the cows and roams around with the other milkmaids. She says that she will, however, not put on her lips the flute which has been blessed by the touch of the lips of Lord Krishna because it is their belief that Lord Krishna loves his flute more than them (the milkmaids). She says that the flute is much more blessed than them because it receives the love of Lord Krishna’s lips. This is why all the milkmaids are jealous of the flute and treat it as their rival. Thus, she is prepared to do anything and everything except to put the flute to her lips.
शब्दार्थ :
- मोर-पखा – मोर-मुकुट;
- पितम्बर – पीला वस्त्र (कृष्ण की धोती);
- अधरा – ओंठ;
- गुंज की माला – रत्नों की माला;
- ग्वारनि – गाय चरानेवाली कृष्ण की सखियाँ